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43 साल पहले आज ही के दिन Phoolan Devi ने 20 लोगों को मारी थी गोली…

Phoolan Devi :

 

 

Phoolan Devi : ऑनलाइन बुलेटिन डेस्क | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन : 14 फरवरी युवाओं के लिए भले ही वैलेंटाइन डे के रूप में उत्सव का माहौल लेकर आता हो, लेकिन बेहमई (उत्तर प्रदेश) के लिए इस तारीख के कुछ अलग ही मायने हैं। आज से ठीक 43 साल पहले 14 फरवरी 1981 की शाम को यमुना किनारे बसे बेहमई (उत्तर प्रदेश) में जब फूलन देवी ने अपने गिरोह के साथ मिलकर हमला किया था, तो उस शाम ने कई घरों में हमेशा के लिए अंधेरा छा गया था। उस समय जब भी कोई गिरोह यमुना नदी पार कर जालौन या कानपुर की सीमा में प्रवेश करता था तो अक्सर बेहमई से होकर गुजरता था।

 

डकैत खान-पान, रसद समेत तमाम प्रकार की जरूरतें यहीं के ग्रामीणों से पूरी करवाते थे। लालाराम गिरोह में जब कुसुमा नाइन और फूलन देवी शामिल थी, तब यहां आना – जाना खूब रहता था । उस वक्त गिरोह में विक्रम मल्लाह भी शामिल था। ग्रामीणों द्वारा सभी के चेहरे पहचाने जाने लगे थे। बाबू सिंह गुर्जर की हत्या के बाद जब विक्रम मल्लाह की हत्या की गई तो गिरोहों के बीच जातीय खाई बढ़ गई थी।

 

फूलन देवी ने 20 को क्यों मारी गोली

 

कहा जाता है कि फूलन देवी जब 16 साल की थी तब बेहमई के ठाकुरों ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया था. उस वक्त वह किसी तरह ठाकुरों के चंगुल से अपनी जान बचाकर भाग निकलने में कामयाब रही थी. लेकिन फूलन देवी ने अपने साथ हुए इस अन्याय को याद रखा. फूलन देवी साल 1981 में एक बार फिर बेहमई गांव में पहुंची. इस बार वो कोई आम लड़की नहीं बल्कि डाकुओं की रानी थी.

 

14 फरवरी को फूलन देवी ने बेहमई गांव के 30 मर्दों को घेर लिया और उन पर गोलियां चलाई. इस हत्याकांड में 22 लोगों की मौत हो गई थी. तब फूलन देवी केवल 18 साल की थी.

 

पूरी घटना समझने जानते हैं कौन हैं फूलन देवी

 

फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को यूपी में जालौन के घूरा का पुरवा में हुआ था. वह गरीब और ‘छोटी जाति’ की जरूर थी लेकिन बचपन से ही अपने हक के लिए आवाज उठाती रही थीं. उन्हें जब पता चला की उसके पैतृक जमीन को उसके चाचा ने हड़प लिया है तब 10 साल की उम्र में ही वह अपने चाचा से भिड़ गई.

 

जिसके सजा के तौर पर घरवालों ने उसकी शादी 10 साल की ही उम्र में अपने से 30-40 साल बड़े आदमी से करवा दी. उस आदमी ने फूलन देवी के साथ बलात्कार किया. धीरे-धीरे फूलन देवी का स्वास्थ्य खराब होने लगा और उन्हें वापस अपने मायके आना पड़ गया. कुछ दिन बाद जब वह वापस गई तो पता चला की उनके पति ने दूसरी शादी कर ली है.

 

फिर हुई डाकुओं से दोस्ती

 

धीरे धीरे फूलन देवी का उठना-बैठना डाकुओं के होने लगा. हालांकि उन्होंने कभी ये नहीं बताया कि उनकी डाकुओं के दोस्ती अपनी मर्जी से हुई या उन लोगों ने उन्हें उठा लिया था. अपनी आत्मकथा में फूलन देवी ने इस बारे में बस इतना लिखा है कि ‘शायद किस्मत को यही मंजूर था’.

 

डाकुओं के गिरोह में फूलन देवी के आने के बाद मतभेद शुरु होने लगा. सरदार बाबू गुर्जर को फूलन देवी पसंद नहीं थी. इस बात को लेकर विक्रम मल्लाह ने उसकी हत्या कर दी और खुद सरदार बन गया. अब फूलन देवी विक्रम के साथ रहने लगी. कुछ दिनों बाद इसी गिरोह की भिड़ंत ठाकुरों के एक गैंग से हुई. ठाकुर का गैंग बाबू गुज्जर की हत्या से नाराज था और उसका मानना था कि गुज्जर की मौत की जिम्मेदार फूलन देवी है.

 

ठाकुर गैंग की विक्रम मल्लाह गिरोह से लड़ाई हुई जिसमें विक्रम मल्लाह मारा गया. फूलन देवी पर बनी फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ में दिखाया उन ठाकुरों के गिरोह ने फूलन देवी को किडनैप कर बेहमई में 3 हफ्ते तक बलात्कार किया गया. हालांकि माला सेन की एक किताब जिसमें फूलन देवी के बारे में लिखा गया है उसमें इस बात को कभी खुल के नहीं कहा है.

 

बेहमई से छूटने के बाद फूलन देवी डाकुओं के गैंग में शामिल हो गई. साल 1981 में वह बेहमई गांव लौटी. वहां उसने कुछ ठाकुरों को पहचान लिया. जिसके बाद फूलन देवी ने गांव से निकालकर गोली मार दी.

 

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