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अगन | ऑनलाइन बुलेटिन

©मजीदबेग मुगल “शहज़ाद”

परिचय- वर्धा, महाराष्ट्र


 

गज़ल

पानी भी नहीं बुझा पाता तन की तपन को।

कुदरत ने क्या चिज बनाई मन की अगन को।।

 

विज्ञान चाहे कितना भी आगे क्यो न बढे ।

वो रोक नहीं पाया आशिक दिल के जतन को।।

 

दिल अपना प्रीत क्यों पराई बन गई है ।

इस मोहब्बत का भाव नहीं मिला रतन को ।।

 

औरत दुनिया में सारे दुख दर्द सह लेती ।

लेकिन आज भी सहन नहीं करती सौतन को ।

 

स्कूल कॉलेज पढ़ाई ये चाहत के ठिकाने ।

कौन मना कर सका मोहब्बत के वतन को ।।

 

अनजान लोगों की पहचान बनाती चाव ।

हर कोई गाता ज़िन्दगी में इस भजन को ।।

 

आशिक अगर जाता है रन में लड़ाई पर ।

इश्क मोहब्बत रोक दे उस आते कफ़न को।।

 

‘शहज़ाद ‘ इश्क मजहब धर्म का मौताज नहीं।

किस से कैसे होता प्यार जाने लगन को ।।

 

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