बेग़ाना हैं…
©बाबू भंडारी “हमनवा’
परिचय- बल्लारपुर, महाराष्ट्र.
ये कैसी ख्व़ाहिश हैं के मिटती नहीं।
इक पल के लिए भी…..
तुम्हारी याद दिल से हटती नहीं।
हर पल खोए रहते तुम्हारी तबस्सुम भरी याद में।
जैसे माहताब के दीदार हो पूनम भरी रात में।
ये कैसी मुहब्बत आई हमारे नादान-ए-ज़िन्दगी में ?
के सारी महकती….
ज़िन्दगी गुज़र जाए बस तुम्हारी बंदगी में।
क्या इसी का नाम गुल-ए-मुहब्बत हैं ?
जिसमें खोता अपनी जान और शोहरत हैं।
ये मुहब्बत भी क्या ग़ज़ब एहसास हैं ?
ऐसा लगता हैं…..
आज अभी भी हमारे आसपास हैं।
सदियों पुराना इसका अफसाना हैं।
“बाबू”आज भी इसका सारा ज़माना दीवाना हैं।
के अपने आप से भी होता बेग़ाना हैं।
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