भोर का तारा…
©पद्म मुख पंडा
परिचय- रायगढ़, छत्तीसगढ़
निशा जा चुकी, अपने घर पर, फैल रहा हैै अब उजियारा।
गूंज उठा संगीत, फिजां में, मधुर मनोहर कितना प्यारा।
पंछी कलरव करते, उड़ते, चहक रहे आपस में
मिलकर।
अपना अपना सुख दुःख कहकर, भूल गए हैं
दुःख वे सारा।
निशा जा चुकी, अपने घर पर, फैल रहा है अब उजियारा।।
निर्मल मंदाकिनी, प्रवाहित होती है , कल कल
ध्वनियों पर।
ठंडी ठंडी हवा बह रही, तन ढकने का करे इशारा।
बत्तख घर से निकल रहे हैं, पंक्तिबद्ध होकर
बतियाते।
उनको बहुत पसंद मिले जो, नन्हीं मछली का
हो चारा।
लोग बाग , चहलकदमी के लिए, घरों से निकल
पड़े हैं,
आसमान पर दमक रहा है, सबको देख भोर
का तारा।।
निशा जा चुकी अपने घर पर, फैल रहा है अब उजियारा।।
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