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लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने दलबदल से मनोवैज्ञानिक बढ़त ली

नई दिल्ली/भोपाल

कांग्रेस को शनिवार को मध्यप्रदेश से बुरी खबर मिली। केंद्रीय मंत्री रहे वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुरेश पचौरी बीजेपी में शामिल हो गए। चुनाव से पहले बीजेपी ने मध्यप्रदेश में एक ब्राह्मण चेहरा झटक लिया। उनके साथ पूर्व विधायक संजय शुक्ला भी पार्टी से निकल गए। कांग्रेस में मची भगदड़ की यह अंतिम कड़ी नहीं थी। देश के अन्य राज्यों में भी ऐसे कांग्रेस नेताओं की लंबी लिस्ट है, जो पार्टी छोड़कर जाने वाले हैं। हर दूसरे दिन कांग्रेस का बड़ा नेता भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ले रहा है। इन नेताओं में विधायक, पूर्व सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री भी शामिल है। हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चाह्वान और यूपी के बड़े नेता आर पी एन सिंह भी कांग्रेस को बाय बोलकर कमल खेमे के सदस्य बन गए। बीजेपी ने इन दोनों नेताओं को राज्यसभा में भेज दिया। कांग्रेस पार्टी यह भगदड़ उस समय मची है, जब राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं। पार्टी का नेतृत्व भी गांधी परिवार के पास नहीं है बल्कि दलित नेता मल्लिकार्जुन खरगे कांग्रेस की कमान संभाल रहे हैं। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेतृत्व नेताओं को एकजुट नहीं कर पा रही है।

कांग्रेसी थाम रहे बीजेपी का दामन, लिस्ट बड़ी लंबी है

कभी कांग्रेस नेताओं के लिए अछूत रही बीजेपी में पूर्व कांग्रेसियों की लंबी जमात है। उत्तर से दक्षिण तक अभी रोज किसी न किसी राज्य से कांग्रेस नेता के बीजेपी में शामिल होने की खबर आ रही है। दरअसल यह सिलसिला 2019 के बाद शुरू हो गया था। चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार और लोकसभा चुनाव की आहट ने कांग्रेस नेताओं को सकते में डाल दिया। दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस नेताओं के लिए अपने द्वार खोल दिए हैं। चुनाव से पहले मनोवैज्ञानिक बढ़त लेने का यह पुराना तरीका रहा है। 'गुड़ के पास मधुमक्खी' की कहावत पुरानी रही है, मगर कांग्रेस का संकट गहराने लगा है। अशोक चाह्वान और आर पी एन सिंह जैसे नेताओं ने पार्टी छोड़ी। मध्यप्रदेश में कमलनाथ कमल के साथ आते-आते ठिठक गए।

फिर गुजरात में नेता प्रतिपक्ष रहे अर्जुन अर्जुन मोढवाडिया और नारण राठवा ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। गुजरात में तो कांग्रेस के चार विधायकों ने भी पाला बदल लिया और बीजेपी में शामिल होने के लिए इस्तीफा तक दे दिया। राजस्थान में महेंद्रजीत सिंह मालवीय, मंत्री लालचंद कटारिया, पूर्व गृह राज्य मंत्री राजेंद्र यादव, पूर्व विधायक आलोक बेनीवाल, पूर्व विधायक विजयपाल मिर्धा भी भगवा चोला पहनने वाले हैं। बिहार के तीन कांग्रेस विधायक भी बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। दक्षिण भारतीय राज्य केरल में करुणाकरण की बेटी पद्मजा वेणुगोपाल और आंध्र में पूर्व मुख्यमंत्री किरन कुमार रेड्डी भी बीजेपी मेंबर बन चुके हैं। यूपी में वाराणसी के पूर्व सांसद राजेश मिश्रा ने भी शुक्रवार को भाजपा की सदस्यता ले ली।

बेहतर रिटर्न गिफ्ट की उम्मीद, कांग्रेस नेताओं के लिए भरोसेमंद बनी है बीजेपी

नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने बीजेपी की कमान संभालने के बाद चुनावी रणनीति बदल दी। अब भारतीय जनता पार्टी चुनाव लड़ने के लिए नहीं बल्कि जीतने के लिए मैदान में उतरती है। पार्टी के रणनीतिकार डेटा एनालिसिस में माहिर हो चुके हैं। कांग्रेस से आए नेताओं ने बीजेपी की नीतियों के प्रति समर्पण दिखाया तो मोदी-शाह उसे बड़े इनाम देने से नहीं चूके। देश के पांच राज्यों में कांग्रेस से आए नेता भाजपा के मुख्यमंत्री के तौर पर गिने जाते हैं। असम के सीएम हिमांता विस्वसरमा, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह, अरुणाचलप्रदेश के सीएम पेमा खांडू, नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो और त्रिपुरा के सीएम डॉ. माणिक साहा कांग्रेसी रह चुके हैं।

मध्यप्रदेश में सरकार बनवाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया मोदी सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्रालय जैसे ताकतवर विभाग के मंत्री बनाए गए। जितिन प्रसाद को भी यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया। पंजाब में तो बीजेपी ने कांग्रेस से आए सुनील जाखड़ को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दे दी। जगदंबिका पाल, रीता बहुगुणा जोशी और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा जैसे नेताओं को बीजेपी ने पार्टी जॉइन करते ही टिकट थमाया था। महाराष्ट्र के नेता नारायण राणे भी मोदी सरकार के मंत्री हैं। ये सारे नेता कभी कांग्रेस के भरोसेमंद की लिस्ट में शुमार थे। पश्चिम बंगाल में भाजपा ने नेता प्रतिपक्ष की बड़ी जिम्मेदारी भी विपक्ष से आए सुवेंदु अधिकारी को दी।

 

बड़े नेताओं को एडजस्ट करने में चूक गए राहुल-खरगे

कांग्रेस सिर्फ तेलंगाना, हिमाचल और कर्नाटक में सरकार चला रही है। अब पार्टी के पास नेताओं को राज्यसभा में भेजने के लिए सीमित ऑप्शन हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 19.51 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि बीजेपी ने 37.43 फीसदी वोट हासिल किए थे। अभी बीजेपी देशभर में 17 राज्यों की सत्ता संभाल रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए हुए ओपिनियन पोल भी बीजेपी के सत्ता में तीसरी बार वापसी का इशारा कर रहे हैं। सत्ता की मलाई की हांडी अभी बीजेपी के पास रहने वाली है। दूसरी ओर कांग्रेस के कई नेता अपनी भविष्य की राजनीतिक संभावनाओं की तलाश में हैं।

अभी के राजनीतिक हालात में उनके पास दो ही ऑप्शन हैं। पहला धैर्य रखें और देश का मूड बदलने का इंतजार करें। दूसरा, किसी दूसरी पार्टी के साथ राजनीतिक पारी को आगे बढ़ाएं। भारतीय जनता पार्टी अगले आम चुनाव में 50 फीसदी वोट हासिल करने का लक्ष्य लेकर अभियान चला रही है। इस लक्ष्य के लिए जरूरी है कि हर दूसरा वोट बीजेपी के खाते में जाए। इसके लिए जरूरी है कि विरोधियों को भी पार्टी के समर्थक के रूप में तब्दील किया जाए, इसलिए भाजपा के कांग्रेसीकरण की आलोचना के बाद भी नई बीजेपी में कांग्रेस नेताओं का स्वागत हो रहा है और उन्हें मलाईदार पद दिए जा रहे हैं।


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