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CIMS भर्ती घोटाला : जब स्वास्थ्य मंत्री विपक्ष में थे तब फर्जी भर्ती पर उठाए थे सवाल, अब नियमित करने दिए आदेश l ऑनलाइन बुलेटिन

बिलासपुर l ऑनलाइन बुलेटिन l cims भर्ती घोटाला उजागर करने वालों में चयन से वंचित 58 लोग शामिल थे, जिन्होंने cims से दस्तावेज हासिल कर इस मामले की जांच करने की मांग की थी। उनके दस्तावेजों के आधार पर ही जिला प्रशासन से लेकर शासन स्तर पर जांच की प्रक्रिया शुरू की गई। वर्ष 2012-13 में cims में भर्ती घोटाला उजागर हुआ, तब स्थानीय प्रशासन से लेकर sit जांच कराई गई। विपक्ष में रहते हुए मंत्री टीएस सिंहदेव ने फर्जी नियुक्ति को लेकर सवाल उठाए थे। अब 8 साल बाद इन दागी कर्मचारियों को नियमित करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।

 

बता दें कि छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में वर्ष 2012-13 में cims में भर्ती घोटाला उजागर हुआ, तब स्थानीय प्रशासन से लेकर sit जांच कराई गई। इसके बाद लोकायोग और हाईकोर्ट तक मामला पहुंचा। फिर भी स्वास्थ्य विभाग इस गड़बड़ी को लेकर कोई नतीजे पर नहीं पहुंच पाई। उस समय विपक्ष में रहते हुए वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने फर्जी नियुक्ति को लेकर सवाल उठाए थे। अब 8 साल बाद इन दागी कर्मचारियों को नियमित करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। cims में उस समय तकरीबन 400 सौ कर्मचारियों की नियुक्ति में फर्जीवाड़ा उजागर हुआ था, जो कर्मचारी आज भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

 

डीन डॉ. केके सहारे का कहना है कि cims के कर्मचारियों के परीविक्षा अवधि समाप्त करने की प्रक्रिया चल रही है। प्रत्येक स्टॉफ के दस्तावेजों का परीक्षण कर कार्रवाई की जा रही है। पहले चरण में 90 कर्मचारियों की परीविक्षा अवधि समाप्त कर दी गई है। उन्होंने स्वीकार किया कि भर्ती में गड़बड़ी हुई थी। शासन से मिले दिशानिर्देशों के अनुसार कार्रवाई की जा रही है। जिन कर्मचारियों के पास दस्तावेज हैं, उनका परीक्षण किया जा रहा है। वहीं, जिनकी भर्ती में गड़बड़ी हुई है। उनकी नियुक्ति निरस्त की जाएगी।

 

ऐसे हुआ था भर्ती घोटाला

 

cims में तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के करीब 400 पदों पर भर्ती के लिए प्रबंधन ने वर्ष 2012-13 में विज्ञापन जारी किया था। भर्ती प्रक्रिया पूरी होने के बाद पता चला कि डॉक्टरों ने अपने ही घर में काम करने वाले प्राइवेट कर्मचारियों के साथ ही अनुभव व अयोग्य उम्मीदवारों की नियुक्ति कर दी। यह भी पता चला कि चयनित अभ्यर्थियों के पास योग्यतानुसार प्रमाणपत्र भी उपलब्ध नहीं थे। यही नहीं विज्ञापन की प्रक्रिया में भाग नहीं लेने वाले उम्मीदवारों का भी चयन कर लिया गया। दरअसल, यह मामला तब सामने आया, जब संविदा में काम कर रहे स्टॉफ को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। तब उन्होंने सूचना के अधिकार कानून के तहत भर्ती प्रक्रिया के दस्तावेज जुटाए। फर्जीवाड़ा सामने आने पर इस मामले की शिकायत हुई। उस समय तत्कालीन एडिशनल कलेक्टर नीलकंठ टेकाम के नेतृत्व में जांच कमेटी बनी। उनके जांच प्रतिवेदन में भी भर्ती में अनियमितता बरतने की बात सामने आई। लेकिन, उनकी जांच रिपोर्ट की फाइल की दबा दी गई। इधर, शिकायतकर्ताओं ने आला अधिकारियों के बाद लोकायोग से भी शिकायत की। लोकायोग जांच में भी गड़बड़ी की पुष्टि करते हुए शासन को sit जांच कराने की अनुशंसा की गई। दूसरी तरफ चयनित उम्मीदवारों ने इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। इसके चलते मामले की जांच व फाइल भी दबी रह गई। हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद मामले में शासन को नियमानुसार कार्रवाई करने के आदेश दिए। इसके बाद भी गड़बड़ी की फाइल दबी की दबी रह गई। इधर, cims के स्टॉफ ने अपने नियमितीकरण की मांग को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया। करीब दो माह तक उनका आंदोलन चला। उनके दबाव में आकर शासन ने डीन तृप्ति नागरिया को हटाकर डॉ. केके सहारे को डीन की जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने आंदोलनरत स्टॉफ को नियमित करने का भरोसा दिलाया और आंदोलन समाप्त करा दिया। इसके साथ ही उनके नियमितीकरण की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।

 

टीएस सिंहदेव ने नेता प्रतिपक्ष रहते उठाए सवाल

 

जब cims में भर्ती घोटाला सामने आने पर तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष व वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने ट्विट किया था कि जब भर्ती प्रक्रिया की रिकार्ड ही गायब कर दी गई है तो अब जांच कराने का क्या मतलब, उन्होंने भर्ती में गड़बड़ी करने वालों पर सरकार का संरक्षण होने का भी आरोप लगाया था। लेकिन, जैसे ही कांग्रेस की सरकार बनी, तब इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया और sit जांच की फाइल भी दबा दी गई। अब उन्होंने कर्मचारियों को नियमित करने के निर्देश दिए हैं।

 

58 लोगों की शिकायत के बाद शुरू हुई थी जांच

 

भर्ती में घोटाला उजागर करने वालों में चयन से वंचित 58 लोग शामिल थे, जिन्होंने cims से दस्तावेज हासिल कर इस मामले की जांच करने की मांग की थी। उनके दस्तावेजों के आधार पर ही जिला प्रशासन से लेकर शासन स्तर पर जांच की प्रक्रिया शुरू की गई। इसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई।


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