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छत्तीसगढ़ में हैं एक मंदिर… जहां मान्यता है कि यहां पूजा बाद प्यार होता है पूरा l ऑनलाइन बुलेटिन

रायपुर l (छत्तीसगढ़ बुलेटिन) l अभी तक प्यार में केवल शीरीं-फरहाद, लैला-मजनू, हीर-रांझा, रोमियो-जूलियट और सोहनी-महिवाल के किस्सों की दुहाई दी जाती है। मगर छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल बस्तर के सुदूर आदिवासी अंचल के युवा भी एक ऐसे प्रेमी युगल को अपना आदर्श मानते हैं, जिन्होंने प्रेम के लिए अपनी जान दे दी।

 

केशकाल के पास पेंड्रावन में मौजूद इस मंदिर को स्थानीय आदिवासी पेंड्रावनी मंदिर, मिटकी माता मंदिर, सति माता मंदिर समेत अन्य कई नामों से भी जानते है। खास बात है कि वैलेंटाइन-डे के दिन यहां मढ़ई होती है और बड़ी संख्या में प्रेमी जोड़े इस मंदिर इस उम्मीद से दर्शन करने आते है कि उनका प्यार भी अधूरा न रहे।

 

पूरे बस्तर में क्या मान्यता है

 

पूरे बस्तर और ओड़िशा में मिटकी माता को धन की देवी माना जाता है। यहां हर घर में आपको पूजा करते हुए भक्त मिल जाएंगे। इस मंदिर में प्रेमी जोड़े की पूजा करने और प्यार अधूरा न रहे इसे लेकर भी वर्षों पुरानी मान्यता है जो पूरे बस्तर में व्याप्त है।

 

आदिवासियों का आदर्श प्रेमी युगल

 

‘झिटकू-मिटकी’ हैं, जिन्होंने अपने सच्चे प्रेम की खातिर कई सालों पहले जान दे दी थी। आदिवासी अंचलों में प्यार के लिए प्राण न्योछावर करने की उदात्त परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसका उदाहरण ‘झिटकू-मिटकी’ की पूजा से मिलता है।

 

झिटकू और मिटकी की यह पुरानी अमर प्रेमगाथा बस्तर जिले के विकासखंड विश्रामपुरी के पेंड्रावन गांव की है। इसके अनुसार गोंड आदिवासी का एक किसान पेंड्रावन में निवास करता था। उसके सात लड़के और मिटकी नाम की एक लड़की थी. सात भाइयों में अकेली बहन होने के कारण वह भाइयों की बहुत प्यारी और दुलारी थी।

मिटकी के भाई इस बात से सदैव चिंतित रहते थे कि उनकी प्यारी बहन जब अपने पति के घर चली जाएगी तो वे उसके बिना नहीं रह पाएंगे, इस कारण भाइयों ने एक ऐसे व्यक्ति की तलाश शुरू की जो शादी के बाद भी उनके घर पर रह सके। वर के रूप में उन्हें झिटकू मिला, जो भाइयों के साथ काम में हाथ बंटाकर उसी घर में रहने को तैयार हो गया।

 

गांव के समीप एक नाला बहता था, जहां सातों भाई और झिटकू पानी की धारा को रोकने के लिए छोटा-सा बांध बनाने के प्रयास में लगे थे। दिन में वे लोग बांध बनाते थे और शाम को घर चले जाते थे, लेकिन हर रात पानी बांध की मिट्टी को तोड़ देता और उनका प्रयास व्यर्थ हो जाता था।

 

एक रात एक भाई ने स्वप्न में देखा कि इस कार्य को पूर्ण करने के लिए देवी बलि मांग रही है. अंधविश्वास के आधार पर उन्होंने इस बात के लिए हामी भर ली और बलि के लिए झिटकू का चयन कर लिया।

एक रात उन्होंने उसी बांध के पास झिटकू की नरबलि दे दी. बहन को जब मालूम हुआ तो उसने भी झिटकू के वियोग में बांध के पानी में कूदकर अपने जीवन को समाप्त कर लिया और सति हो गई। इस बलिदान की कहानी जंगल में आग की तरह सभी गांवों में फैल गई।

 

बस्तर इलाके में लोगों द्वारा बताई गई कहानी के मुताबिक इसके बाद पूरे क्षेत्र में अकाल आ गया. लोग पानी के लिए त्राही-त्राही मचाने लगे। फिर बाद में पेंड्रावन जहां ‘मिटकी’ सति हुई थी वहीं उनका मंदिर बनाया गया और लोगों की ऐसी मान्यता है कि उस दिन के बाद से बस्तर में कभी अकाल नहीं पड़ा।

 

इस प्यार और बलिदान से प्रभावित होकर ग्रामीण आदिवासी झिटकू और मिटकी की पूजा करने लगे, आज ये आदिवासी प्रेम की सफलता के लिए झिटकू-मिटकी की पूजा को सही मानते है।

 

उनका कहना है कि यहां पूजा करने के बाद कोई भी प्रेमी-प्रेमिका का सपना अधूरा नहीं रहता है। सदियों बाद आज के आधुनिक युग में झिटकू-मिटकी की ख्याति बस्तर के सुदूर गांवों से देश की राजधानी तक भी फैल चुकी है और यहां 14 फरवरी वैलेंटाइन-डे के दिन प्रेमी जोड़ों की भीड़ रहती है और यहां जोड़े अपने प्यार को पूरा होने की मन्नतों के साथ पूजा करने पहुंचते है।

 

 जल्द फिल्म होने वाली है रिलीज

 

 

झिटकु-मिटकी की इसी कहानी पर बहुत जल्द एक फिल्म रिलीज होने वाली है। जिसे स्थानीय युवा एवं फि़ल्म के प्रोड्यूसर जगत मरकाम, फि़ल्म निर्देशक राजा खान और उनकी टीम ने बनाई है। जिसमें एक्टर लालजी कोर्राम, ऐक्ट्रेस- लवली अहमद होंगी, वहीं फिल्म के अहम किरदार में कांकेर के संजय जैन भी नजर आएंगे।


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