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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, पति के मुताबिक ना चले पत्नी, तो मिलेगी बच्चे की कस्टडी? | ऑनलाइन बुलेटिन

बिलासपुर | (कोर्ट बुलेटिन) | बच्चे की कस्टडी को लेकर दायर की गई एक याचिका पर फैसला देते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि पत्नी, पति की इच्छा अनुरूप स्वयं को नहीं ढालती है, तब यह बच्चे की कस्टडी से उसे वंचित करने का निर्णायक कारक नहीं होगा। न्यायालय ने पारिवारिक अदालत के आदेश को रद्द करते हुए मां को ही बच्चे की कस्टडी सौंपने का फैसला दिया है।

 

जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय एस अग्रवाल की युगल पीठ ने महासमुंद जिले की पारिवारिक अदालत के आदेश को रद्द कर मां को बच्चे की कस्टडी सौंपने का फैसला सुनाया। हाईकोर्ट की युगल पीठ ने प्रस्तुत याचिका के निर्णय में टिप्पणी करते हुए कहा है कि जींस-टीशर्ट पहनने, पुरुष सहयोगियों के साथ नौकरी के सिलसिले में बाहर जाने से किसी भी महिला का चरित्र तय नहीं किया जा सकता है।

 

न्यायालय ने कहा है कि इस तरह की सोच से महिलाओं के अधिकार और स्वतंत्रता के लिए चल रही लड़ाई लम्बी और कठिन हो जाएगी। न्यायालय ने कहा कि ऐसी शुतरमुर्ग की तरह की मानसिकता रखने वाले समाज के कुछ लोगों के प्रमाण-पत्र से किसी महिला का चरित्र निर्धारित नहीं किया जा सकता।

 

शादी के 5 साल बाद हुआ था तलाक

 

न्यायालय ने यह भी कहा है कि प्रस्तुत मामले में यदि पत्नी, पति की इच्छा अनुरूप स्वयं को नहीं ढालती है, तो यह बच्चे की कस्टडी से उसे वंचित करने का निर्णायक कारक नहीं होगा। छत्तीसगढ़ के महासमुंद निवासी एक दंपती का विवाह वर्ष 2007 में हुआ था। इसी वर्ष दिसंबर माह में उनका एक पुत्र पैदा हुआ। विवाह के पांच साल बाद, वर्ष 2013 में दोनों ने आपसी सहमति से तलाक ले लिया। दोनों में आपसी सहमति बनी कि पुत्र अपनी मां के पास रहेगा। इसके बाद बच्चे की मां महासमुंद में ही एक निजी संस्थान में ऑफिस असिस्टेंट की नौकरी करने लगी।

 

फैमिली कोर्ट ने पिता ने लगाए थे ये आरोप

 

तलाक के बाद 2014 में बच्चे के पिता ने महासमुंद की पारिवारिक अदालत में आवेदन प्रस्तुत कर बेटे को उसे सौंपने की मांग की। पारिवारिक अदालत में बच्चे के पिता ने बताया कि उसकी पत्नी अपने संस्थान के पुरुष सहयोगियों के साथ बाहर आना-जाना करती है, वह जींस-टी शर्ट पहनती है, उसका चरित्र भी अच्छा नहीं है, इसलिए उसके साथ रहने से बच्चे पर गलत असर पड़ेगा।

 

फैमिली कोर्ट के खिलाफ HC गई थी महिला

 

गवाहों के बयान के आधार पर फैमिली कोर्ट ने 2016 में बच्चे की कस्टडी मां के स्थान पर पिता को सौंप दी थी। बच्चे की मां ने फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया कि दूसरों के बयान के आधार पर कोर्ट का यह निष्कर्ष निकालना गलत है कि पिता ही बच्चे की उचित देखभाल कर सकता है। कोर्ट ने बच्चे को उसकी मां को सौंपने का फैसला देने के साथ यह माना है कि बच्चे को अपने माता-पिता का समान रूप से प्यार और स्नेह पाने का अधिकार है। हाईकोर्ट ने बच्चे के पिता को उससे मिलने और संपर्क करने की सुविधा भी दी है।


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