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Marital Rape मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के विभाजित फैसले को चुनौती, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को भेजा नोटिस | ऑनलाइन बुलेटिन

नई दिल्ली | [कोर्ट बुलेटिन] | सुप्रीम कोर्ट ने Marital Rape (मैरिटल रेप) मामले को अपराधीकरण करने से संबंधित एक मुद्दे पर दिल्ली हाईकोर्ट के विभाजित फैसले के खिलाफ एक याचिका पर शुक्रवार को केंद्र सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया है।

 

जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने इस मुद्दे की सुनवाई करने के लिए सहमति व्यक्त की और मामले को फरवरी 2023 में आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

 

एआईडीडब्ल्यूए (अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ) ने मैरिटल रेप के मामलों का अपराधीकरण करने से संबंधित मुद्दों पर दिल्ली हाईकोर्ट के विभाजित फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। दिल्ली हाईकोर्ट की दो जजों की डिवीजन बेंच ने 12 मई को मैरिटल रेप के मुद्दे पर विभाजित फैसला सुनाया था।

 

हाईकोर्ट के विभाजित फैसले में एक जज ने कानून में उस अपवाद को खत्म करने का पक्ष लिया था जो पतियों को पत्नियों की सहमति के बिना उनके साथ यौन संबंध बनाने पर मुकदमा चलाए जाने से सुरक्षा प्रदान करता है।

 

वहीं, दूसरे जज ने अपवाद को असंवैधानिक ठहराने से इनकार कर दिया था। हालांकि, दोनों जजों ने मामले में पक्षकारों को सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की अनुमति दे दी थी क्योंकि इसमें कानून के ऐसे महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं जिनके लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की आवश्यकता होती है।

 

जस्टिस राजीव शकधर ने किया था समर्थन

 

हाईकोर्ट की संबंधित बेंच के न्यायाधीश जस्टिस राजीव शकधर ने मैरिटल रेप के अपवाद को समाप्त करने का समर्थन किया था, जबकि जस्टिस सी. हरिशंकर ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत यह अपवाद असंवैधानिक नहीं है और संबंधित फर्क आसानी से समझ में आने वाला है।

 

याचिकाकर्ताओं ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 (बलात्कार) के तहत मैरिटल रेप के अपवाद की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी है कि यह अपवाद उन विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव करता है, जिनका उनके पतियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है। इस अपवाद के अनुसार, यदि पत्नी नाबालिग न हो, तो उसके पति का उसके साथ यौन संबंध बनाना या यौन कृत्य करना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता।

 

हाईकोर्ट का फैसला एनजीओ आरआईटी फाउंडेशन और एआईडीडब्ल्यूए द्वारा दायर जनहित याचिका पर आया था। एआईडीडब्ल्यूए का प्रतिनिधित्व वकील करुणा नंदी ने किया और याचिका वकील राहुल नारायण के माध्यम से दायर की गई।

 

एआईडीडब्ल्यूए ने अपनी याचिका में कहा कि मैरिटल रेप के लिए अनुमत अपवाद विनाशकारी है और बलात्कार कानूनों के उद्देश्य के विपरीत है, जो स्पष्ट रूप से सहमति के बिना यौन गतिविधि पर प्रतिबंध लगाते हैं। याचिका में कहा गया है कि यह विवाह की गोपनीयता को विवाह में महिला के अधिकारों से ऊपर रखता है।

 

याचिका में कहा गया है कि मैरिटल रेप अपवाद संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(ए) और 21 का उल्लंघन है।

 

 

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