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परसा कोल ब्लॉक मामले में पेड़ों की कटाई पर हाईकोर्ट में याचिका: सरकार से मांगी रिपोर्ट; 4 मई को होगी सुनवाई | ऑनलाइन बुलेटिन

बिलासपुर | [कोर्ट बुलेटिन] | परसा कोल ब्लॉक आबंटन और इसके नाम पर पेड़ों की कटाई को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने कहा कि अधिग्रहण को दी गई चुनौती गम्भीर विषय है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सवाल किया है कि क्या पेड़ों को पुर्नजीवित किया जा सकता है। कोर्ट ने निजी कंपनी के लिए पेड़ों की कटाई करने पर राज्य शासन को रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। वन्य एवं पर्यावरण विभाग की अनुमति से यहां मतलब नहीं है। कोर्ट ने राज्य सरकार को पेड़ों की कटाई पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने निर्देश के साथ स्टे आवेदन पर 4 मई को सुनवाई तय की है।

 

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में मंगल साय, ठाकुर राम, मोतीराम, आनंद राम, पानिक राम एवं अन्य ने याचिका दायर कर बताया कि परसा कोल ब्लाक के खदान से वे प्रभावित हैं। यहां राजस्थान विद्युत मंडल के लिए कोल ब्लॉक में खनन का कार्य निजी कंपनियां करेंगी। इस कारण कोल इंडिया जैसी भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया नहीं अपनाई जा सकती।

 

कोल धारित क्षेत्र एवं विकास अधिनियम 1957 का उपयोग किसी राज्य की सरकारी कंपनी और विशेष कर निजी कंपनी के हित में नहीं किया जा सकता।1957 से 2017 तक 60 वर्ष इस अधिनियम का उपयोग कर किसी राज्य सरकार और निजी कंपनी के हित में जमीन अधिग्रहण नहीं किया गया है। यह भी बताया कि अधिनियम केवल केंद्र सरकार की कंपनियों कोल इंडिया आदि के लिए उपयोग किया जाता रहा है।

 

इस अधिनियम में कोल धारित भूमि अधिग्रहण के लिए जो प्रक्रिया निर्धारित की गई है, उसका भी उल्लंघन किया गया है। अधिनियम की धारा 8 के तहत आपत्तियों का उचित निराकरण नहीं हुआ है। पूरा क्षेत्र घने जंगल से आच्छादित और हाथी प्रभावित क्षेत्र है। खनन की अनुमति देने से मानव हाथी द्वंद्व और बढ़ेगा। वहीं एक लाख पेड़ काटे जाएंगे।

 

पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने आग्रह

 

याचिकाओं में लगाये गये स्टे आवेदन और संशोधन आवेदन पर गुरुवार को बहस होनी थी, लेकिन चीफ जस्टिस अरुप कुमार गोस्वामी की डिवीजन बेंच के उपलब्ध न हो पाने के कारण जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की बेंच में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव श्रीवास्तव और अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने पक्ष रखते हुए बताया कि वैसे तो याचिकाओं में कोल बेयरिंग एक्ट को भी चुनौती दी गई है। जिसमें अधिग्रहित की गई जमीन किसी निजी कंपनी को खनन के लिये नहीं दी जा सकती।

 

अधिवक्ताओं ने बताया कि राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम के नाम पर भूमि अधिग्रहण कर निजी कंपनी को भूमि सौपीं जा रही है। यह स्वयं कोल बेयरिंग एक्ट के प्रावधानों एवं सुप्रीम कोर्ट की ओर से कोल ब्लॉक के जजमेंट फैसले के खिलाफ है। ऐसे में परसा कोल ब्लॉक से संबंधित कोई भी कार्य आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। याचिका में पेड़ों की कटाई पर भी तत्काल रोक लगाने का आग्रह किया गया है।

 

कंपनी के अधिवक्ता बोले- वन विभाग करा रहा पेड़ों की कटाई

 

राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम और राजस्थान कॉलरी की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि पेड़ों की कटाई कंपनी ने नहीं बल्कि वन विभाग ने की है। खदान को सभी तरह की वन पर्यावरण अनुमति प्राप्त है। इस पर डिवीजन बेंच ने पूछा कि यदि भूमि अधिग्रहण निजी कंपनी के हाथ जाने के कारण अवैध साबित होता है तो इन कटे हुए पेड़ों को क्या पुर्नजीवित किया जा सकता है।


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