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दतलीन हे …

©राजेश कुमार मधुकर (शिक्षक), कोरबा, छत्तीसगढ़


छत्तीसगढ़ी हास्य कविता


 

 

 

बनेचकन सोच बिचार के,

अपन बिहाव के मैं सोचेव

एकठिन गाँव के घर म

मैं लड़की देखेबर गयेव

 

संग बाबू आउ कका रहिस

मोला एकठन बात कहिस

लड़की आही देखत रहिबे

अपन बात हमन ल कहिबे

 

जब ओहा पानी लेके आईच

मोर दिल के धुकधुकी बाढ़गे

धीरे से ओकर मुँह ल देखेव

सोचेव लागथे रिस्ता माढ़गे

 

मोर बाबू आउ कका मन

लड़की के नाम ल पूछिन

कतका पढ़ाई करें हावय

घरद्वार के काम ल बुझिन

 

 

पढ़े गुने बने तो जानत हवास

का तोला खेती किसानी आथे

येला सुनके ओहर मुचकाथे

थोरकिन मोला देख लजाथे

 

महुँ ओला देख मुचकाथव

अब अपन बारे म बताथव

छोटकन मोर नौकरी हावय

थोरकन खेती बाड़ी जानथव

 

ओकर बाद सियान ह कहिथे

का तै लड़की ल बने देख डरे

बने सोच बिचार के बताना हे

एहर जिनगी भर के रिस्ता हरे

 

हमर बाबू आउ कका ह कहिथे

लड़की तो एकदम पकलीन हे

हमन ल रिस्ता पसंद आगे बेटा

फेर लड़की थोरकिन दतलीन हे

 

दाँत दिखत हे त का होगे बेटा

लड़की हर बने कमयलीन हे

येला बिहाव करले ग बेटा

फेर लड़की थोरकिन दतलीन हे …

 


 

 

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