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स्टडी में दावा; खतरे में है इंसान का अस्तित्व? तेजी से घट रहा स्पर्म काउंट | ऑनलाइन बुलेटिन

नई दिल्ली | [नेशनल बुलेटिन] | शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने दावा किया है कि दुनियाभर के कई देशों में लोगों का स्पर्म काउंट कम हो रहा है। अध्ययन में पता चला है कि साल 2000 के बाद पूरी दुनिया में ही यह बात देखने को मिली है। हेब्र्यू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हेगाई लेविन ने कहा, भारत से ज्यादा डेटा मिला है।

 

इस डेटा के मुताबिक देखा गया है कि भारत में भी स्पर्म काउंट काफी कम हुआ है। हालांकि यह पूरी दुनिया के जैसा ही है। उन्होंने कहा, पिछले 46 वर्षों में पूरी दुनिया में स्पर्म काउंट में 50 फीसदी तक की कमी देखी गई है। हालांकि हाल के सालों में यह तेजी से घटने लगा है।

 

शुक्राणुओं की संख्या ना केवल प्रजनन की क्षमता से जुड़ी होती है बल्कि इसके कम होने का बुरा प्रभाव शरीर पर अन्य तरीकों से भी पड़ता। इससे बड़ी बीमारियों का खतरा, टेस्टिक्युलर कैंसर की सभावना बढ़ जाती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि स्पर्म काउंट कम होने से आयु भी कम हो जाती है।

 

ह्यूमन रिप्रोडक्शन अपेडट जर्नल में यह अध्ययन प्रकाशित किया गया। जिसमें 53 देशों के आंकड़े जुटाए गए थे। आंकड़े इकट्ठा करने में सात साल का वक्त लगा। इसमें साउथ अमेरिका, एशिया और अफ्रीका के देश शामिल थे जहां इससे पहले कभी इस तरह से स्पर्म काउंट को लेकर अध्ययन नहीं किया गया। अध्ययन में कहा गया है कि पहली बार इन क्षेत्रों में भी लोगों में टोटल स्पर्म काउंट और स्पर्म कंसंट्रेशन में कमी देखी गई। ऐसा पहले उत्तरी अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में देखा गया था।

 

लेविन ने कहा कि हालिया अध्ययन संकेत करता है कि आने वाले समय में प्रजनन तेजी से प्रभावित होगा। उन्होंने कहा, आज की लाइफस्टाइल, पर्यावरण में केमिकल शुक्राणुओं को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। अगर इस समस्या से नहीं निपटा गया तो मनुष्य का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि भारत में अलग से अध्ययन किया जाना चाहिए क्योंकि यहां जनसंख्या कम नहीं हो रही है।

 

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