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लोकल मुद्दे पर हिंदुत्व को तरजीह देना BJP को पड़ा भारी, महाराष्ट्र उपचुनाव में तीसरी हार, जनता ने सिरे से नकारा, क्या छिनेगा करार ! कसबा पेठ की पराजय पर मंथन शुरू | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

मुंबई | [महाराष्ट्र बुलेटिन] | Even though the BJP is in power in Maharashtra along with the Shiv Sena led by Eknath Shinde, the results of the by-elections are going to increase the tension for it. Its candidate has been defeated from Pune’s Kasba Peth seat.

 

महाराष्ट्र में भाजपा भले ही एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के साथ सत्ता में है, लेकिन उसके लिए उपचुनाव के नतीजे टेंशन बढ़ाने वाले हैं। बीते साल कोल्हापुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में उसे हार झेलनी पड़ी थी। इसके बाद नागपुर में शिक्षक एमएलसी सीट पर उसे हार झेलनी पड़ी थी। अब पुणे की कसबा पेठ सीट पर उसके कैंडिडेट की हार हुई है, जो चिंताजनक है। भाजपा के लिए यह इसलिए भी परेशानी बढ़ाने वाली हार है क्योंकि बीते तीन दशकों से वह लगातार यहां से जीत रही थी। इस बीच डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कसबा पेठ की हार पर आत्मचिंतन करने की बात कही है। हालांकि भाजपा ने पुणे की ही चिंचवाड़ सीट पर जीत पा ली है।

यहां से अश्विनी जगताप पहली महिला विधायक चुनी गई हैं। भाजपा में इस बात को लेकर मंथन जरूर होगा कि उसे कसबा पेठ में हार क्यों झेलनी पड़ी। यहां भाजपा के हेमंत रासाने को कांग्रेस के उम्मीदवार रविंद्र धनगेकर के मुकाबले 10 हजार वोटों से हार झेलनी पड़ी। यह हार तब हुई है, जब भाजपा और उसकी सहयोगी एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने पूरा जोर लगाया था। कसबा पेठ में एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस ने भी कई रैलियों को संबोधित किया था। इसके अलावा चंद्रकांत पाटिल, गिरीश महाजन और रविंद्र चव्हाण जैसे सीनियर नेता भी जुटे रहे थे।

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लोकल मुद्दे पर हिंदुत्व को तरजीह देना पड़ा भारी

 

भाजपा ने इस चुनाव में हिंदुत्व के मुद्दे को जोरशोर से उठाया। माना जा रहा है कि एक उपचुनाव में इस तरह राष्ट्रीय मुद्दे उठाना उसके पक्ष में नहीं गया। स्थानीय मसलों पर यदि वह चुनाव लड़ती तो नतीजा कुछ और हो सकता था। यही नहीं उद्धव ठाकरे की शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के वोटों का बंटवारा ना होना भी हार की वजह बन गया। एक तरफ कई फैक्टर्स ने भाजपा के वोट को बांट दिया तो वहीं महाविकास अघाड़ी के मतदाता एकजुट रहे और उनके कैंडिडेट को जीत मिल गई। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने भी हार मान ली है और समीक्षा किए जाने की बात कही है।

 

‘तिलक परिवार को टिकट न देना भी हार की एक वजह’

 

पार्टी सूत्रों ने माना है कि कुछ कारण इस हार के रहे हैं, जिन्हें नजरअंदाज न किया जाता तो शायद नतीजा कुछ अलग होता। कुछ लोगों ने माना कि कसबा पेठ में ब्राह्मणों की अच्छी खासी आबादी रही है और यहां से मुक्ता तिलक विधायक थीं, जिनके निधन के बाद चुनाव हुआ। मुक्ता तिलक ब्राह्मण होने के साथ लोकमान्य तिलक जैसी हस्ती के परिवार से आती थीं। उनके निधन के बाद परिवार के किसी सदस्य को टिकट देने की मांग उठी थी, जिसे भाजपा ने नजरअंदाज कर दिया। माना जा रहा है कि यह भी उसके खिलाफ गया है और उसका सामाजिक समीकरण गड़बड़ा गया।

 

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