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दिल्ली में अब LG की सरकार, केंद्र की मोदी सरकार ने जारी किया नए कानून का नोटिफिकेशन | Newsforum

नई दिल्ली | नए कानून में शहर की चुनी हुई सरकार के ऊपर उपराज्यपाल को प्रधानता दी गई है। गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक अधिनयम के प्रावधान 27 अप्रैल से लागू हो गए हैं। नए कानून के मुताबिक, दिल्ली सरकार का मतलब ‘उपराज्यपाल होगा और दिल्ली की सरकार को अब कोई भी कार्यकारी फैसला लेने से पहले उपराज्यपाल की अनुमति लेनी होगी।

 

इसके मुताबिक, दिल्ली विधानसभा में पारित विधान के परिप्रेक्ष्य में सरकार का आशय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के उपराज्यपाल से होगा और शहर की सरकार को किसी भी कार्यकारी कदम से पहले उपराज्यपाल की सलाह लेनी होगी। लोकसभा में इस विधेयक को 22 मार्च और राज्यसभा में 24 मार्च को पारित किया गया था। माना जा रहा है कि इस कानून से केजरीवाल सरकार की टेंशन और बढ़ सकती है, जिसकी ओर इशारा खुद केजरीवाल ने कर दिया था।

 

केंद्र की मोदी सरकार ने दिल्ली के उपराज्यपाल की ताकत बढ़ा दी है। अब दिल्ली में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा, क्योंकि बगैर एलजी के मंजूरी के कोई कार्यकारी कदम नहीं उठाया जा सकेगा। केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) कानून 2021 यानी GNCT Act को मंजूरी दिए जाने बाद इसे लेकर अधिसूचना जारी की है। इस अधिसूचना के मुताबिक, दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) कानून 2021 अप्रैल से प्रभाव में आ गया है।

 

गृह मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव गोविंद मोहन के हस्ताक्षर के साथ जारी अधिसूचना में कहा गया, ‘दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम, 2021 (2021 का 15) की धारा एक की उपधारा -2 में निहित शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए केंद्र सरकार 27 अप्रैल 2021 से अधिनियम के प्रावधानों को लागू करती है।’ अधिसूचना में कहा गया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021, 27 अप्रैल से अधिसूचित किया जाता है। अब दिल्ली में सरकार का अर्थ उपराज्यपाल है।

 

जब इस विधेयक को राज्यसभा में पारित किया गया था, तभी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसे लोकतंत्र के लिए दुखद दिन करार दिया था। वहीं, केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा था कि इस संशोधन का मकसद मूल विधेयक में जो अस्पष्टता है उसे दूर करना है ताकि इसे लेकर विभिन्न अदालतों में कानून को चुनौती नहीं दी जा सके। उन्होंने उच्चतम न्यायालय के 2018 के एक आदेश का हवाला भी दिया था, जिसमें कहा गया है कि उपराज्यपाल को सभी निर्णयों, प्रस्तावों और एजेंडा की जानकारी देनी होगी। यदि उपराज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच किसी मामले पर विचारों में भिन्नता है तो उपराज्यपाल उस मामले को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। रेड्डी ने कहा था कि इस विधेयक को किसी राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं लाया गया है और इसे पूरी तरह से तकनीकी आधार पर लाया गया है।

 

क्यों जरूरत पड़ी

 

सूत्रों का कहना है कि साल 2019 की शुरुआत में ही आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद स्थिति को स्पष्ट करने की जरूरत पड़ी है। इसलिए ये संशोधन दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच शक्तियों और अधिकारों के लिए होते टकराव को कम करने के लिए किए गए हैं।

 

जानें क्या होंगे बदलाव

 

कानून में किए गए संशोधन के अनुसार, अब सरकार को उपराज्यपाल के पास विधायी प्रस्ताव कम से कम 15 दिन पहले और प्रशासनिक प्रस्ताव कम से कम 7 दिन पहले भेजने होंगे। दिल्ली के केंद्रशासित प्रदेश होने के चलते उपराज्यपाल को कई शक्तियां मिली हुई हैं। दिल्ली और केंद्र में अलग-अलग सरकार होने के चलते उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों को लेकर तनातनी चलती ही रहती है।


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