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धम्मपदं : हमारा जितना भला माता-पिता, भाई- बंधु, मित्र या दूसरे नहीं कर सकते, उससे अधिक भला सही दिशा में लगा हुआ हमारा चित्त करता है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

न तं माता पिता कयिरा, अञ्जे वापि च ञातका।

सम्मापणिहितं चित्तं, सेय्यसो नं ततो करे।।

 

भी के माता-पिता अपनी संतान के भले के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। वे अपनी प्रिय संतान को पाल पोस कर, पढ़ा-लिखा कर, आजीविका कमाने के योग्य बनाते हैं। संतान का विवाह कर सांसारिक जीवन में उतारने का फर्ज भी पूरा करते हैं। संतान पर उनका बड़ा ऋण और उपकार होता है।

 

कुछ माता-पिता अपनी संतान को जीवन जीने का सही मार्ग भी बता देते हैं। कुछ ज्ञानवान शिक्षक, मित्र या बड़े मुक्ति के मार्ग में भी मददगार हो सकते हैं।

 

कुछ लोग भौतिक संसाधनों के लिए भी मदद कर देते हैं। परंतु इन सबके बावजूद व्यक्ति का पूर्ण कल्याण नहीं होता है, इनसे स्थिर सुख शांति नहीं मिलती है।

 

तथागत बुद्ध कहते हैं- व्यक्ति के जीवन में माता-पिता, भाई-बंधु, शिक्षक, मित्र का अलग-अलग क्षेत्र में बड़ा योगदान होता है लेकिन व्यक्ति अपने चित्त में पैदा होने वाले अच्छे-बुरे विचारों के कारण ही सुख-दुख को प्राप्त करता है। मन पर संयम और दिशा देने का काम तो स्वयं को ही करना पड़ता है।

 

अत: सही मार्ग पर लगा हुआ, शुद्ध चित्त, सम्यक संकल्प वाला चित्त ही व्यक्ति का पूर्ण भला कर सकता है। उसी से व्यक्ति का कल्याण होता है। सही दिशा में चल रहे चित्त में ही अच्छे, कुशल विचार पैदा होते हैं, कुशल कर्म करता है और सुख शांति को पाता है।

अत: व्यक्ति को हर समय चित्त को सही दिशा में साधने का अभ्यास करना चाहिए। सम्यक संकल्प युक्त चित्त ही सुख का सागर है।

 

अतः हमारा जितना भला माता-पिता, भाई बंधु, मित्र या दूसरे नहीं कर सकते उससे अधिक भला सही मार्ग पर लगा हुआ हमारा चित्त (मन) करता है।

 

सबका मंगल हो..सभी प्राणी सुखी हो …

 

डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय– जयपुर, राजस्थान.

 

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