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ना भव्यता, ना चकाचौंध और ना ऐश्वर्य लेकिन धाम्मिकों की श्रद्धा अपार | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

गवान बुद्ध, धम्म और संघ से संबंधित तीर्थ स्थलों (त्रि-रत्न स्थलों) की 10 दिन की धम्म यात्रा पूरी कर 45 उपासक उपासिकाओं का ग्रुप कल ही जयपुर लौटा है.

त्रिरत्न (तीरथ) स्थलों की अद्भुत विचित्रता है. यहां हमें न भव्य मंदिर नजर आएंगे, ना लाखों की भीड़, न भगदड़, न शोरगुल. हमें हर जगह ढाई से एक हजार साल पहले से, सम्राट अशोक से लेकर बुद्ध के कई परम उपासक, राजाओं, रानियों, धनी दानियों द्वारा बनवाए हुए विहारों, स्तूपों और बुद्ध की प्रतिमाओं के भग्नावशेष मिलेंगे. श्रावस्ती में ढाई हजार साल पहले का आनंद बोधि वृक्ष आज भी जीवंत नजर आएगा.

हर जगह प्राकृतिक सुंदरता, शांति और संसार के कोने-कोने से आने वाले धाम्मिक प्रबुद्धजनों की ध्यान साधना और सौम्यता नजर आएगी. इन स्थलों से सटे हुए भगवान बुद्ध के जीवन और दर्शन से जुड़े पल पल की घटना के प्रमाणों से भरे म्यूजियम.

कपिलवस्तु ,संकिसा, सारनाथ, बोधगया, राजगीर, नालंदा, वैशाली ,लुंबिनी, कुशीनगर आदि, जहां-जहां गौतम के चरण पड़े उनकी जीवंत कहानी बताते हुए भग्नावशेष नजर आएंगे. उस काल के पहाड़, गुफाएं, टूटी हुई ईंटें, पत्थर की प्रतिमाएं, स्तूपों के अवशेष ऐसे नजर जाएंगे मानो कल की बात हो.

न कोई भव्यता, न कोई चकाचौंध फिर भी  इन स्थलों के कण-कण में समाए हुए भगवान बुद्ध, उनके धम्म और संघ (त्रिरत्न) के गौरवशाली इतिहास के आगे सभी नतमस्तक नजर आते हैं. मानो ढाई हजार साल बाद बुद्ध इस धरा पर फिर लौट आए हैं.

बुद्धगया के महाबोधि विहार में सम्राट अशोक द्वारा स्थापित बुद्ध की करुणामयी स्वर्ण प्रतिमा और कुसीनारा में भगवान के महापरिनिर्वाण की लेटी हुई अवस्था में उस काल की विशाल प्रतिमा को देखकर हमारी आंखें नम हुए बिना नहीं रह पाती.

धन्य है चक्रवर्ती सम्राट अशोक जिन्होंने भगवान बुद्ध से संबंधित हर स्थान पर चिन्ह, चौरासी हजार स्तूप और विहार बनवा दिये और विशाल शिलालेखों पर धम्म को उकेर कर बौद्ध इतिहास को अमर कर दिया.

भला हो चीनी बौद्ध भिक्षु फाहि्यान और ह्वानसांग का जिन्होंने अपनी भारत यात्रा के दौरान एक एक इंच पर नजर आये बुद्ध से संबंधित विवरण को लिख कर मानव जगत को सुपुर्द कर दिया.

भला हो उन कुछ जिज्ञासु अंग्रेज अफसरों का जिन्होंने सैकड़ों वर्षों तक जमीन में दबे हुए बौद्ध इतिहास को खोदकर संसार के सामने उजागर कर दिया और ऐलान किया कि हां; यही वह धरा है जिस पर पूरे विश्व को गर्व है जहां महामानव बुद्ध और उनके परम उपासक अशोक महान का जन्म हुआ था.

मनुष्य जीवन दुर्लभ है. आप भी एक बार इन त्रिरत्न स्थलों की यात्रा कर स्वयं को धन्य अवश्य करें. जहां-जहां भगवान बुद्ध के चरण पड़े उनको नमन जरूर करें. भारतभूमि में जो थोड़ा स्वाद है वह भगवान बुद्ध के कारण है अन्यथा भारतभूमि, समाज बेस्वाद और बेजान है.

 

     सबका मंगल हो ..सभी प्राणी सुखी हो  …

 

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