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धम्मपद गाथा- आचरण में उतरे तो ही सफल वाणी अन्यथा भाषण, प्रवचन, उपदेश व्यर्थ है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

Dhammapada Gatha- Speech is successful only if it comes into practice, otherwise speech, discourse, sermon are in vain. online bulletin dot in

 

यथा पि रुचिरं पुप्फं, वण्णवन्तं अगन्धकं।

एवं सुभासिता वाचा, अफला होति अकुब्बतो।।

 

जैसे कोई पुष्प सुंदर, आकर्षक, रंग वाला होने पर भी गंध रहित हो, वैसे ही उत्तम वचन भी व्यर्थ होते हैं, यदि कोई उसके अनुसार आचरण न करे।

 

यदि कोई व्यक्ति शास्त्रों को पढ़कर, रटकर कितने ही अच्छे लुभावने प्रवचन दें, उपदेश करें लेकिन उन सुभाषित वचनों, सुंदर वाणी के अनुसार आचरण में नहीं उतारे तो उसके लिए सिर्फ भाषण देना, वाचन करना व्यर्थ है।

 

सुंदर आकर्षक रंग वाले कागज के फूल की तरह बेजान जिसमें कोई सुंगध नहीं होती है। कुछ प्रजाति के फूल बहुत सुंदर रंगों के साथ खिलते हैं लेकिन सुगंध नहीं होती है, बेकार माने जाते हैं।

 

व्यक्ति की पहचान उसके रंग रूप, कद काठी, लुभावनी बातों, ऊचे आदर्शों वाले भाषण, प्रवचन से नहीं होती है बल्कि उसके व्यवहारिक जीवन से होती है कि जो वह कहता है उसको स्वयं कितना आचरण में उतारता है।

 

कथनी और करनी में अंतर नहीं होना चाहिए। यदि अंतर होगा तो ऐसी कथनी निरर्थक है, निष्फल होती है।

 

इसलिए प्रवचन चाहे प्रभावशाली न हो, भाषण चाहे साधारण हो, भाषण करना भी न जानता हो लेकिन वह उनके अनुसार जीवन बिताता है, वैसा ही आचरण में है तो उसका जीवन ही दूसरों के लिए प्रेरणादायक होता है।

 

यथा पि रुचिरं पुप्फं, वण्णवन्तं सगन्धकं।

एवं सुभासिता वाचा, सफला होति सकुब्बतो।। 

 

जिस प्रकार प्रिय, सुंंदर और आकर्षक रंगों वाला, सुंगध वाला पुष्प सार्थक होता है वैसे ही कथनी के अनुसार ही आचरण करने वाले के लिए अच्छी वाणी सफल होती है। फूल सुंदर होने के साथ सुगंधित होता है तो उसका महत्व काफी बढ़ जाता है।

 

किताबों, शास्त्रों के कुछ ज्ञानी प्रवचन तो बहुत सुंदर करते हैं लेकिन ज्ञान को आचरण में उतारने में बहुत पीछे नजर आते हैं। कुछ लोग उच्च आचरण के होते हैं लेकिन अच्छा भाषण नहीं कर पाते। कुछ लोगों का न भाषण अच्छा होता है न आचरण।

 

कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके भाषण और आचरण दोनों अच्छे होते हैं। अच्छा वक्ता, प्रभावशाली वक्ता या भाषण देने में कुशल होना अच्छी बात है लेकिन सफल जीवन के लिए ऐसा होना कोई जरूरी नहीं है। सदाचार, उच्च आचरण ही सुख शांति का आधार है.

 

सबका मंगल हो….सभी प्राणी सुखी हो

 

 

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