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धम्मपद- दृढ़, धीरवान, ध्यानी लोग निर्वाण प्राप्त करते हैं | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

ते झायिनो साततिका, निच्चं दळह-परक्कमा।

फुसन्ति धीरा निब्बानं, योगक्खेमं अनुत्तरं।।

 

निरंतर ध्यान करने वाले, नित्य दृढ़ साधना, दृढ़-पराक्रम करने वाले, धीर पुरुष उत्कृष्ट योगक्षेम (कुशन-मंगल जीवन यापन करने वाले) निर्वाण को प्राप्त कर लेते हैं। अर्थात ऐसे धीरवान व्यक्ति निर्वाण का साक्षात्कार करते हैं और निर्वाण सर्वोच्च अनासक्ति अवस्था है।

 

पालि भाषा ‘झान’ शब्द संस्कृत में ‘ध्यान’ है। पालि भाषा में योग-क्षेम का अर्थ है पूर्ण अनासक्ति, अप्रमाद यानी ध्यान, विवेक, बुद्धि, प्रज्ञा का अभ्यास।

 

तथागत कहते हैं- विवेकवान व्यक्ति निर्वाण का स्पर्श करता है। धीर और वीर वही है जिसने व्यक्ति और वस्तुओं के प्रति राग त्याग दिया है, वह निर्वाण का स्पर्श करेगा, अनुभव करेगा। वह साधक जो निरंतर ध्यान में लीन रहता है, दृढ़ पराक्रमी है, वह गहरी शांति में रहेगा और यह गहरी शांति ही निर्वाण है।

 

निरंतर ध्यान में लीन होने का अर्थ यह नहीं है कि वह हर समय आंखें मूंदकर ध्यान की मुद्रा में बैठा रहता है। ध्यान का अर्थ है वर्तमान मेें रहना। सोते, जागते, उठते, बैठते, घर, बाहर कार्य करते हुए सजग रहना, अच्छे-बुरे की पहचान करना, मन में मैल जमा नहीं होने देना और संसार की अनित्यता का अनुभव करना। ध्यान का ऐसा सतत अभ्यास करने वाले निर्वाण को प्राप्त करते हैं।

        सबका मंगल हो.. सभी प्राणी सुखी हो

 

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