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धम्मपद- जाग्रत, अप्रमादी व्यक्ति निर्वाण पद प्राप्त करता है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

अप्पमादो अमतपदं, पमादो मच्चुनो पदं।।

अप्पमत्ता न मीयन्ति, ये पमत्ता यथा मता।।

 

-प्रमाद (प्रमाद न करना) अमृत (निर्वाण) का पद है, अमर पद है और प्रमाद मृत्यु का पद है। प्रमाद-रहित व्यक्ति कभी मरते नहीं, जिस तरह प्रमादी मरते हैं। प्रमादी तो मरे समान होते हैं।

 

अप्रमाद (aware, diligent, allert) का अर्थ है सावधानी, होश, सजगता, उत्साह, धम्म-उद्यमशीलता। ‘पमाद’ पालि भाषा का शब्द है, संस्कृत में यह ‘प्रमाद’ हो जाता है। संस्कृत के प्रमाद का अर्थ है अवहेलना, असावधानी, लापरवाही, मदहोशी, सुस्ती, तंद्रा, नींद, आलस्य।

 

 बुद्ध के सम्पूर्ण जीवन का सार है —

अप्रमाद, जाग्रत, जाग कर जीना, अवैयरनेस।

 

अत: बुद्ध धम्म में ‘अप्रमाद’ निर्वाण मार्ग का प्रवेश द्वार है। सभी कुशल कर्मों के मूल में अप्रमाद को माना गया है। लेकिन पालि भाषा का ‘अप्पमाद’ शब्द संस्कृत के ‘अप्रमाद’ का पर्याय मात्र नहीं बल्कि उससे कहीं अधिक है।

 

बुद्ध धम्म को सही रूप में जानने समझने के लिए ‘अप्पमाद’ शब्द का अर्थ ही केन्द्र में रखना चाहिए लेकिन सामान्य जन को समझाने के लिए ‘अप्रमाद’ शब्द का ही उपयोग किया जाता है।

 

तथागत ने कहा, अप्रमाद में रहना, प्रमाद-रहित रहना अमृत पद है। सावधान, जाग्रत, होश में रहना अमृत पद है। किसी वस्तु और व्यक्ति से मोह न करना सावधानी है। नश्वर नष्ट होने वाली, छूट जाने वाली वस्तुओं से मोह करना प्रमाद और मृत्यु पद है, मोह करने वाला मरता है।

 

अप्पमाद में रहने वाला अमृतपद पाता है वह संसार की सच्चाई को जानने वाला होता है। जैसा है उसे वैसा ही देखना, यथाभूत को यथाभूत देखने वाला मृत्यु हो प्राप्त नहीं हो सकता, वह तो निर्वाण को प्राप्त होता है।

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कोई भी व्यक्ति अप्रमादी कब हो सकता है?

 

जब वह अप्पमाद की विशेषता को जाने और ऐसा जान लेने के बाद अति प्रसन्न हो ज्ञान प्राप्ति में लग जाता है, ध्यान में लग जाता है और निर्वाण को पाता है। उसके अप्पमाद के गुण से उसमें उत्साह, स्मृति, विवेक, संयम और धम्म के बीज अंकुरित हो जाते हें। ये ही अप्पमाद के गुण हैं जिससे वह निर्वाण को प्राप्त होता है।

 

तथागत कहते हैं कि प्रमादी व्यक्ति जिस तरह मरता है अप्रमादी वैसा नहीं मरता। प्रमादी रो-रोकर मरता है क्योंकि उसका मन तो भौतिक वस्तुओं में अटका हुआ है। अप्रमादी व्यक्ति जाग्रत, सावधान, होश में जीता है वह धन-दौलत, पद प्रतिष्ठा को क्षणभंगुर तथा यहीं छूटने वाली समझकर उनसे आसक्त नहीं रहता है।

 

इसलिए शरीर छूटते समय उसके चित्त में यह भाव नहीं रहता है कि मेरे पीछे कुछ छूट रहा है, वह तृष्णा से मुक्त हो जाता है और संतोष का अमृत पद पाता है, निर्वाण पद प्राप्त करता है। अप्रमादी नहीं मरते, लेकिन प्रमादी तो मरे समान ही है, सोए हुए व्यक्ति को क्या जिंदा कहना, मरे हुए ही हैं।

 

       सबका मंगल हो… सभी प्राणी सुखी हो

 

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