धम्मपदं- प्रज्ञावान, अप्रमादी व्यक्ति सबसे आगे हो जाता है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन


©डॉ. एम एल परिहार
अप्पमत्तो पमत्तेसु, सुत्तेसु बहुजागरो।।
अबलस्सं व सीघस्सो, हित्वा याति सुमेधसो।।
प्रमादी लोगों में अप्रमादी, जागरूक व्यक्ति तथा अज्ञान की नींद में सोए हुए लोगों को छोड़कर प्रज्ञा से जाग्रत, प्रज्ञावान, सावधान व्यक्ति उसी तरह तेजी से आगे निकल जाता है, जैसे कमजोर घोड़ों को पीछे छोड़कर, तेज शक्तिशाली घोड़ा आगे निकल जाता है।
धम्मपदं- अप्रमाद की सभी प्रशंसा करते हैं
अप्पमादेन मघवा, देवानं से_तं गतो।
अप्पमादं पसंसन्ति, पमादो गरहितो सदा।।
अप्रमाद के कारण देवताओं में इंद्र श्रेष्ठ बना। इसलिए सभी प्रज्ञावान, पंडितजन अप्रमाद की प्रशंसा करते हैं और प्रमाद (आलस्य, असावधानी) की सदा निंदा होती है।
धम्मपदं- अप्रमादी बंधनों को जला डालता है
अप्पमादरतो भिक्खु, पमादे भयदस्सि वा।
सञ्ञोजनं अणु थूलं डहं, अग्गी व गच्छति।।
जो भिक्खु या अन्य कोई साधक अप्रमाद में रत रहता है या प्रमाद से भय खाता है, प्रमाद से डरकर दूर रहता है, ऐसा साधक अपने छोटे-बड़े सभी (कर्म-संस्कारों के) बंधनों में आग की तरह जलाते हुए बढ़ता है।
जो यह समझ जाता है कि हर क्षण जाग्रत रहना और मन पर विकारों का मैला जमा नहीं होने देना, दुख मुक्ति का मार्ग है, सुख शांति का मार्ग है। ऐसा अप्रमादी साधक राग-द्वेष, काम-क्रोध, लोभ लालच जैसे सारे बंधनों को जला देता है और निर्वाण की ओर आगे बढ़ता है। मन की पूर्ण सुख शांति को प्राप्त करता है।
धम्मपदं- अप्रमादी का पतन नहीं, निर्वाण के निकट होता है
अप्पमादरतो भिक्खु, पमादे भयदस्सि वा।
अभब्बो परिहानाय, निब्बानस्सेव सन्तिके ।।
भिक्षु, अन्य कोई साधक अप्रमाद में रत रहता है, या प्रमाद में भय देखता है, प्रमाद से डर कर दूर रहता है, उसका पतन नहीं हो सकता। वह तो निर्वाण के समीप पहुंचा हुआ होता है।
प्रमाद ही पतन की जड़ है, सावधानी ही साधना है। अत: सतत ध्यान करने वाला, जागरूक साधक प्रमाद में नहीं पड़ता। वह दृढ़ संकल्प के साथ निर्वाण पर आगे बढ़ता है।
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