धम्मपदं: हाड़- मांस- मज्जा से बने इस शरीर के रूप- रंग पर किस बात का घमंड, इतना क्यों इतराना? एक दिन तो इसे मिट्टी में मिल जाना है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन
अचिरं वतयं कायो, पठविं अधिसे स्सति।
छुद्धो अपेतविञ्ञाणो, निरत्थं व कलिंगरं।।
अहो! यह तुच्छ शरीर शीघ्र ही चेतना रहित होकर बेकार जली हुई लकड़ी की तरह धरती पर गिरकर पड़ा रहेगा।
तथागत कहते हैं- हाड़-मांस-मज्जा के बने इस शरीर के रूप-रंग पर किस बात का घमंड, क्यों अहंकार करना? इतना क्यों इतराना?
इस क्षणभंगुर, नश्वर शरीर को सुगंध, सोना, हीरा, मोती, जवाहरात से सजाने से क्या लाभ? वह तो आज-कल में मुर्दा होकर सड़ी लकड़ी की तरह बेकार होकर जमीन पर पड़ा रहेगा। शरीर अनित्य है, नश्वर है, एक दिन इसको मिट्टी में मिल जाना है।
लेकिन व्यक्ति सांसारिक चकाचौंध, राग-द्वेष, मोह-लोभ, तृष्णा में फंस कर इस सच्चाई को गहराई से नहीं समझता, गहराई से विचार नहीं करता।
जिस शरीर के रूप-रंग पर व्यक्ति का गुमान होता है, दूसरे आकर्षित होते हैं, मोहित होते हैं तो व्यक्ति को अपने शरीर से और अधिक मोह हो जाता है।
लेकिन यह सुंदर काया भी एक दिन झुर्रियों से भर जाएगी, सूखी जर्जर लकड़ी की तरह हो जाएगी और एक दिन मृत्यु होने पर बेकार होकर रह जाएगी।
सारे परिजन, मित्र, धन- संपत्ति, पद-प्रतिष्ठा यहीं रह जाएंगे, सिर्फ अपने कर्मों की गठरी साथ आएगी।
सबका मंगल हो…. सभी प्राणी सुखी हो
©डॉ. एम एल परिहार
ये भी पढ़ें: