सम्राट अशोक की प्रिय रानी देवी का पीहर, पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा का धम्म शहर आज अपने गौरवशाली अतीत को याद कर आंसू बहा रहा है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन


डॉ.एम एल परिहार
सम्राट अशोक अवंति महाजनपद की राजधानी उज्जेयिनी के गवर्नर नियुक्त किए गए थे. विदिशा की धनी वैश्य परिवार की पुत्री देवी से प्रेम विवाह हुआ था.
रानी विदिशा देवी ने कभी भी महारानी की तरह जीवन नहीं बिताया और न ही अपने पुत्र महेंद्र व पुत्री संघमित्रा को राजसी जीवन में ढ़ाला. उन्हें बुद्ध के धम्म के प्रति संस्कारित कर श्रद्धावान बनाया. और गर्व के साथ धम्म प्रचार के लिए उन्हें श्री लंका विदा भी किया. फिर जीवनपर्यंत वहीं रहे. भगवान बुद्ध के काल में विदिशा एक भव्य समृद्ध नगर था.
संकट के समय बुद्ध धम्म के स्मारकों को विलुप्त करने के बाद विदिशा में आठवीं सदी के बाद के कुछ पंथों के आज कई स्मारक, मंदिर अवशेष तो बहुत है लेकिन सम्राट अशोक, रानी विदिशा देवी या बुद्ध और उनके धम्म के कोई स्पष्ट स्मारक, स्तूप या विहार नजर नहीं आते हैं. गौरवशाली इतिहास को समय और साजिश की मार ने दबा दिया गया.
आज विदिशा के विशाल उदयगिरि पर्वत की चट्टानों पर प्रतिमाएं व गुफाएं तो हैं लेकिन कहीं बुद्ध प्रतिमा नजर नहीं आई. है भी तो बुद्ध के बदले रुप में. उदयगिरी के शिखर पर भव्य बौद्ध विहार और धम्म स्तंभ के टूटे हुए भग्नावशेष के दर्शन होते हैं.
चक्रवर्ती सम्राट अशोक के काल से लेकर तीसरी सदी तक बुद्ध, धम्म और संघ के उजियारे से चमकने वाला विदिशा आज अपने गौरवशाली अतीत को याद कर आंसू बहा रहा है.
सबका मंगल हो…..सभी प्राणी सुखी हो
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