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सांची: श्री लंका महाबोधि सोसाइटी के कारण आज सांची विश्वपटल पर चमक पाया | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान


 

सोसाइटी द्वारा आयोजित इस महोत्सव में देश विदेश के लाखों लोग तथागत बुद्ध की विरासत को वंदन करने आते हैं. सांची से ही भिक्षु महेंद्र और भिक्षुणी संघमित्रा श्री लंका गये थे.

भगवान बुद्ध के 2 धम्म सेनापति सारीपुत्त और मोग्गलायन के पवित्र अस्थि अवशेषों को इस दिन लोगों के दर्शन के लिए रखा जाता है.

फिर इन्हें भव्य झांकी में सजाकर शोभायात्रा के द्वारा चेतियागिरी विहार से स्तूपों तक ले जाकर परिदक्षिणा करके वापस विहार में बंद रख दिया जाता है.

दोनों के अवशेषों को सन् 1851 में सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने स्तूप संख्या 3 की खुदाई कर प्राप्त किया था.

इस पावन दिन देश विदेश से लाखों लोग इस गौरवशाली ऐतिहासिक स्मारक के महोत्सव में शामिल होकर बुद्ध, धम्म और संघ के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा प्रकट करते हैं.

सारीपुत्त और महामोग्लायन राजगीर के अतिअमीर ब्राह्मण परिवारों में जन्मे परममित्र थे. दोनों एकसाथ भिक्षु बने थे. 

आज हम भगवान बुद्ध के धम्म के इन ज्येष्ठ और श्रेष्ठ भिक्षुओं के स्मृति अवशेषों के दर्शन कर उनके महान योगदान को नमन करते हैं.

उनके कारण बुद्ध का मानव कल्याणकारी धम्म विश्व में इतना विराट स्वरूप धारण कर सका. 

श्रीलंका महाबोधी सोसायटी का सांची के म्यूजियम के पास एक बहुत बड़ा सुंदर विहार हैं जहां सांची आने वाला कोई भी यात्री ठहर सकता है.

 

      सबका मंगल हो… सभी प्राणी सुखी हो      

 

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