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साहित्यिक परिवार द्वारा आयोजित अप्रैल फूल विषय पर मनीषियों की परिचर्चा | ऑनलाइन बुलेटिन

इंदौर | [मध्यप्रदेश बुलेटिन] | विगत रविवार 3 मार्च को साहित्यिक परिवार की ओर से आयोजित संगोष्ठी में विद्वानों के विचार क्रम में परम्परानुसार गणेश वंदना श्रीमती अलका गुप्ता प्रियदर्शनी लखनऊ तथा सरस्वती वंदना श्रीमती अनुराधा दुबे प्रियदर्शिनी प्रयाग द्वारा प्रस्तुत करने उपरांत अलका ने आओ मेरे जीवन में मां करती हूं मैं तेरे हवाले भजन के साथ अनुराधा ने अप्रैल फूल बनाने के कारणों का उल्लेख किया साथ ही मां भवानी को समर्पित रचना जय जय जननी मात भवानी कृपासिंधु बरसाने वाली नव दुर्गा का रूप निराला का सहगान अपने नन्हे मुन्ने ब्रह्मचारिणी स्वरूप के साथ प्रस्तुत किया।

 

श्रीमती अनामिका मिश्रा सरायकला जमशेदपुर ने अपनी अमृतमयी वाणी से अंबे पट खोलो जरा जगदंबे पट खोलो जरा भजन के साथ बच्चों को भारतीय संस्कृति का पाठ पढ़ाने में अभिभावकों की दिशा हीनता की ओर संकेत करते हुए अपनी संस्कृति प्रथम का संदेश दिया।

 

कार्यक्रम के प्रारंभ में संचालिका श्रीमती अंबिका प्रदीप शर्मा सिवनी मध्य प्रदेश ने विषय की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए आओ अपनी जड़ों को सीचें के संदेश के साथ गैंगेरियन कैलेंडर की परम्परा में संवत्सर को भूलकर अप्रेल फूल में ही बेवकूफ न बनने की आधुनिक पीढ़ी के मां बाप अब होश में आओ का आह्वान किया।

 

शिक्षक, साहित्यकार, मीडिया प्रबंधक एवं दानदाता गुरुदीन वर्मा बांरा राजस्थान ने नव वर्ष की पीढ़ी को गजल आने वाले नए वर्ष में मेरी तो यही फजल है, जियो और जीने दो सबको कहती मेरी गजल है।

 

गिरीश पाण्डेय काशी उत्तर प्रदेश ने भारतीय संस्कृति और पाश्चात्य अप्रेल फूल पर मर्मस्पर्शी उद्वोधन में वर्तमान पीढ़ी की संतान व उनके अभिभावकों को सनातनी परम्परा की सीख लेने का संदेश दिया।

 

मिथिलेश आनंद भागलपुर युवा साहित्यकार ने अप्रेल फूल की पीड़ा को व्यक्त करते कहा हम प्रकृति के पुजारी पर प्लास्टिक फूलों को पूजने वाले हावी हो रहे हैं। इस पर चिंतन होना चाहिए।साथ ही उनकी प्रिय रचनाहै वो इक दर अभी भी जिस पर चांद सूरज सा की अप्रतिम प्रस्तुति दी।

 

डा गजानन पाण्डेय वरिष्ठ शिक्षाविद हैदराबाद, प्रदीप मिश्र अजनवी दिल्ली सार्वभौमिक समीक्षक, पंकज त्रिपाठी छंद /हृदय सम्राट हरदोई उत्तर प्रदेश ने भारतीय संस्कृति और पाश्चात्य अप्रेल फूल पर मर्मस्पर्शी उद्वोधन में वर्तमान पीढ़ी की संतान व उनके अभिभावकों को चेतावनी के स्वर में लौटो अपनी संस्कृति में योग को योगा राम को रामा कृष्ण को कृष्णा कहना भूलो बाप को बाप माँ को माँ न कि डेड मम यानी जीते दफना दिया या फिर आश्रमों की राह।

 

इंदौरवी बहुआयामी प्रतिभा साहित्यकार गजलकार कथाकार ज्योतिषाचार्य आलोक रंजन त्रिपाठी ने अपनी मनुहारी वाणी में समसामयिक रचनाओं के पाठ सह भारतीय संस्कृति के पोषण में युवाओं का आवाहन किया। प्रकाश हेमावत पटल समीक्षक रतलाम की टिप्पणियों के लिए शब्द शेष नहीं अनुभव किया गया।

 

हाईकोर्ट एडवोकेट व साहित्यकार द्वारा भारतीय संस्कृति पर मंत्रमुग्ध उद्वोधन के साथ रचना पाठ किया गया। मीनेष चौहान फरुखावाद आंग्लभाषा विशेषज्ञ होने उपरांत भी हिन्दी के प्रति समर्पण का उल्लेख अनुकरणीय है। अंत में कार्यक्रम संचालिका व पटल प्रशासिका अम्बिकाप्रदीप शर्मा सिवनी मप्र ने आभार ज्ञापित करते हुए पटल के उद्देश्य पर विशेष ध्यान आकर्षित किया।

 

मंच प्रिय आर आर झा रंजन, डा दशरथ मसानिया यात्रारत व डा मंगलेश जायसवालकालापीपल शाजापुर मध्यप्रदेश आंदोलनरत होने से उपस्थिति में असमर्थता व्यक्त की।

 

राजीव गाजियाबाद रामसाय श्रीवास राम छत्तीसगढ़ मनोज कुमार पाण्डेय कानपुर रामगोपाल निर्मलकर सिवनी प्रेमा पटेल वावतपुर तुलसी मिश्रा शकुन्तला तोमर संस्थापक सामाजिक दर्पण शशिकला जीअवस्थी इंदौर शुचि गुप्ता कानपुर ज्ञानेन्द्र गौड़ अन्नाव मछिन्द्र बापू के साथ पटल के सुधी वक़्ता/श्रोताओं के उत्साहवर्धन करने के लिए साहित्यिक परिवार पटल के प्रतिनिधि बच्चूलाल दीक्षित की ओर से सभी को साधुवाद दिया गया।


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