आप गुलामों की तरह जीना चाहते हैं या आजाद इंसानों की तरह जीना चाहते हैं | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©संकलन- राजेश कुमार बौद्ध
परिचय- संपादक, प्रबुद्ध वैलफेयर सोसाइटी ऑफ उत्तर प्रदेश
कुलाबा जिला उत्तर विभाग और ठाणे जिला दक्षिण विभाग के अस्पृश्यों की संयुक्त परिषद की तैयारी के लिए श्री गणपत महादेव जाधव उर्फ मडके बुवा पिछले 15-20 दिनों से जिस इलाके में परिषद होनी थी, वहां प्रचार के लिए गांव- गांव में घूम रहे थे। परिषद के स्वागतध्यक्ष श्री रामकृष्ण गंगाराम भातनकर ( कुलाबा जिला लोकल बोर्ड के सदस्य ) ने तैयारी बड़ी बारीकी के साथ और बड़े उत्साह से की। इसका फल भी उन्हें मिला। पनवेेल में परिषद का अधिवेशन 29 फरवरी और 01 मार्च, 1936 इन दो दिनों में बहुत अच्छी तरह संपन्न हुआ।
“यह हिस्सा मुंबई से काफी नजदीक होने के बावजूद आज से पहले मैं कभी यहां आ नहीं पाया, इसका मुझे खेद है। कई कारणों से मैं आपसे मुलाकात नहीं कर पाया। लोगों में जागृति के लिए हजारों जगहों से मेरे लिए बुलावा आता है, लेकिन हर जगह मेरा पहुंच पाना संभव नहीं होता। मैं शतमुखी रावण नहीं या बदन में राख मल कर जीने वाला संन्यासी नहीं । आप लोगों की तरह ही मुझे भी अपना पेट पालने के लिए काम करना पड़ता है। मैं भी आप लोगों की तरह हालात से लड़ने वाला आदमी हूं।
इंसानियत को लेकर आपने सवाल किए तब भी आपका स्पृश्य समाज से घनघोर विरोध होता है। आपका जीवन उसी पर निर्भर होने के कारण वे हर तरह से आपकी राह में अडंगे डालते है। वे रोटी का टुकड़ा देंगे, तब आपकी भूख मिटेगी।इसीलिए, इस परावलंबी जीवन को नष्ट करने के पीछे आपको लग जाना चाहिए।
जिस धर्म में हम पैदा हुए, जिस धर्म के सिद्धांतों का हम पालन करते हैं, जिस धर्म को हम अपना मानते हैं वही धर्म आज आपको पीड़ा पहुंचा रहा है। इसी तरह असहाय रहकर उससे मिल रही पीड़ा, आप कितने समय तक और सहोगे? आपसे मैं पूछता हूं कि किसी की मदद लिए बगैर क्या आप हिंदुओं के खिलाफ चल रहे अपने युद्ध में जीत सकते हैं? जिनके सहारे आप जीते हैं, वे क्या कभी आपको इंसानियत के अधिकार देंगे?
कई लोग आपको बताते हैं कि आप अपने पैरों पर खड़े हो जाइए, लेकिन जिसके दोनों पैर काटे गए हों वह कैसे खड़ा रहे? आपको किसी का हाथ पकड़ कर ही खड़े रहना होगा । तभी आपकी ताकत बढ़ेगी। आपकी आज की असहाय स्थिति में जो आपकी मदद करेगा, वही आपका सच्चा मित्र होगा। मित्र भी और संरक्षक भी। इसलिए मैं कहता हूं कि आपको अपना धर्म बदलना चाहिए। इंसान को धर्म प्रिय नहीं, उसे इंसानियत प्रिय होती है।
इसलिए मैं आपसे फिर से कहता हूं कि इस हिंदू धर्म में रहते हुए आप अपनी उन्नति हासिल नहीं कर सकते। आप हिंदू हैं, इसलिए आपकी यह हालत है। आप अगर मुसलमान होते या ईसाई होते या सिख होते तो ये सब रास्ते आपके लिए खुले होते। आप कुछ हद तक अपने लिए आर्थिक विकास बटोर सकते थे, लेकिन आप जब तक हिंदू हो, तब तक यह शैतानी जकड़ और उनका शिकंजा, कभी आपसे दूर नहीं होगा। इसी वजह से आप जिंदा नरक में पिस रहे हैं। इसलिए, आप अपने हालात के बारे में अच्छी तरह से सोचिए,।
तीसरी बात यह है कि हिंदू धर्म की मूर्खताभरी सीख से आपके मन मरे हुए हैं। जिस तरह सांप देखते ही आदमी डर जाता है, उसकी नशे अकड़ जाती है कुछ उसी तरह की आपकी आज की हालत हैं। आपको लगता है कि हम एकदम निचली जाति के हैं, हलकी जाति के हैं। हिंदू धर्म आपको अतिशूद्र मानता है। और आप अपने आपको अतिशूद्र मानते हैं। इसलिए राह चलते भी हिंदुओं के पास से आप नहीं गुजरते,वे सामने पड़ते हैं,तो आप परे हो जाते हैं।
आप सब लोग खेतीहर है। किसान हैं। आपको पता है कि पौधा कब पनपता है। आपको पता है कि एक पेड़ की छाया मैं दूसरा पेड़ जिंदा नहीं रह सकता। और अगर जी भी गया तो बौना हो जाता है। आम के पेड़ बौने हो तो दो पेड़ों के बीच कम से कम 15-20 फुट की दूरी रखनी पड़ती है। तभी उन पेड़ों में मौर आता है और अच्छे ,मीठे फल उगते हैं। इसके पीछे क्या कारण है?
मेरी बताई तीन दिक्कतों को दुर करने के बारे में अगर आप जी जान लगा कर जुट जाएंगे तो आपका विकास जरुर होगा। अब हम आपकी समस्याओं के बारे में सोंचेंगे। आपकी पहली समस्या है आपकी दरिद्रता। इसे दूर करना आपके हाथ में नहीं है।लेकिन हमें मिल कर उसे दुर करने की कोशिश करनी होगी।इस बारे में आपसे अधिक जिम्मेदारी मुझ पर है। मैं और मेरे सहयोगियों पर यह जिम्मेदारी है।
दुसरी और तीसरी समस्या हैं आपकी ‘ असहायता ‘ और आपके ‘ मन का कमजोर होना ‘। इन्हें दूर करना पूरी तरह आपके हाथ में है। उसे कैसे दूर किया जा सकता है, यह मै अपने कर्तव्य के तौर पर आपको बताऊंगा। उस पर अमल करना या नहीं करना ,यह पूरी तरह आपके हाथ में है। मेरे मतानुसार ये दोनों समस्या आपके हिंदू धर्म छोड़ने से दुर होने वाली हैं। मैंने आपको बताया है कि असहायता दुर करने के लिए आप दूसरे धर्म के समाज को अपना मित्र बना लें।
अगर मेरा कहना आपको सही लगता है, तो मेरे पीछे आइए। अगर सही नहीं लगता तो इसी धर्म में पिसते रहिए , मैं यह आपको बता रहा हुं। अपने भले-बुरे की जिम्मेदारी अगर आप मुझे सौंप रहे हैं,तो मेरे बताए अनुसार व्यवहार के लिए आपको तैयार रहना होगा। मैं जिधर जाऊंगा उस तरफ आपको मेरे पीछे-पीछे आना होगा।
सभी लोगों द्वारा धर्म परिवर्तन करना जरुरी है। और इसी बात को ध्यान में रखकर , विचार करने के लिए पांच-दस सालों का समय दिया गया है। इस कालावधि में हिंदु धर्म का बोझ आपके सिर पर है,उसे हटाइए, उसे दूर करें । एक बात ध्यान में रखें, कि जिस समय मुझे लगेगा कि आप धर्म परिवर्तन के लिए तैयार नहीं हो, उस वक्त से आपके और मेरे रास्ते समझो अलग -अलग हैं।
*संदर्भ:-बाबासाहेब डॉ.अम्बेडकर सम्पूर्ण वाड्मय खंड -38 डाॅ.भीमराव अम्बेडकर: लेख तथा वक्तव्य भाग-1, (वर्ष 1920-1936)पेज न. 433/ 434/ 435/ 436/ 437/ 438/ 439/ 440/ 441/ BAWS3*
लेखन और भाषण – बोधिसत्व बाबासाहेब डॉ.भीमराव अम्बेडकर
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