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मंडल के पहले और बाद | newsforum

©संजीव खुदशाह, रायपुर, छत्तीसगढ़

लेखक देश में चोटी के दलित लेखकों में शुमार किए जाते हैं और प्रगतिशील विचारक, कवि, कथाकार, समीक्षक, आलोचक एवं पत्रकार के रूप में भी जाने जाते हैं। “सफाई कामगार समुदाय” एवं “आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग”, “दलित चेतना और कुछ जरुरी सवाल” आपकी चर्चित कृतियों में शामिल है। आपकी किताबों का मराठी, पंजाबी, ओडिया सहित अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

E-mail- sanjeevkhudshah@gmail.com


13 अप्रैल को बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की स्मृति में …

प जब दिल्‍ली आये तो एम्‍स के पास स्थित राजीव चौक जरूर जाएं। ये एक बहुत ही महत्‍वपूर्ण एवं एतिहासिक स्‍थान है। यह इस बात को याद दिलाता रहेगा की एक समय ऐसा भी था जब OBC खुद अपने हकों को कुचलने के लिए आत्‍मदाह करते थे। इससे बड़ा मानसिक गुलामी का स्‍मारक नहीं हो सकता, जो आपको उस गुलामी से निजात पाने के लिए हमेशा कुरेदता रहेगा।

श्री बीपी मंडल को मंडल आयोग की सिफारिशों के जरिए जाना गया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में जो तथ्य, तर्क और विश्लेषण पेश किए हैं वह अतुलनीय है। ज्यादातर लोग समझते हैं कि मंडल आयोग की रिपोर्ट केवल पिछड़ा वर्ग की जातियों तक सीमित रही है, लेकिन मैं बताना चाहुंगा कि तमाम धार्मिक अल्पसंख्यकों के पिछड़ों को भी इस रिपोर्ट में शामिल किया गया है। मंडल आयोग की सिफारिशों के तहत उन्हें भी पिछड़ा वर्ग के समान तमाम सुविधाएँ मिल रही है। इन सुविधाओं के इतर, मैं मानता हूं कि पिछड़ा वर्ग पर मंडल आयोग का एक दूरगामी प्रभाव भी पड़ने वाला था।

गौरतलब है कि मंडल आयोग लागू होने के पहले पिछड़ा वर्ग अपने आप को सवर्ण होने का भ्रम पाले हुए था। साथ ही आरक्षण के नाम पर होने वाले उन्‍माद और हमले में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेता था। अनुसूचित जाति तथा जनजाति को जलील करने में अपनी अग्रणी भूमिका निभाता था। किंतु वास्तविकता यह थी कि पिछड़ा वर्ग, सवर्णों से उतना ही शोषित एवं जलील होता रहा है। जितना कि दलित आदिवासी होते रहे हैं। 7 अगस्त 1990 को जिस दिन मंडल आयोग लागू हुआ, उसके विरोध में बसें जलाईं गईं, आत्मदाह किए गए, विरोध-प्रदर्शन किया गया। वह सब प्रदर्शनकारी OBC पिछड़ा वर्ग के ही थे।

 

मैंने एक कुर्मी यानी वर्मा जाति के छात्र से पूछा कि तुम यह विरोध क्यों कर रहे हो। मंडल आयोग तुम्हारे फायदे के लिए ही तो बना है। आपको आरक्षण मिलेगा और अन्‍य भी सुविधाएं मिलेंगी। तो उसने तपाक से बिना सोचे समझे उत्तर दिया, हम तो कुर्मी क्षत्रिय हैं OBC नहीं। उसी प्रकार साहू, तेली, यादव, अहीर, रावत जाति के अपने मित्रों से प्रश्न किया। सभी ने इससे मिलता-जुलता जवाब दिया। जिन OBC की जातियों ने इसका विरोध उस वक्त किया था; यहां यह बताना जरूरी है कि आज इन सिफारिशों का फायदा उठाने में यही जातियां सबसे आगे हैं।

 

मंडल आयोग के विरोध में कई OBC छात्रों ने आत्मदाह की भी कोशिश की। खास तौर पर दिल्ली में हुए एक आत्मदाह का जिक्र करना मैं यहां जरुरी समझता हूं। दिल्ली विश्वविद्यालय के देशबंधु कॉलेज के छात्र जिसका नाम राजीव गोस्वामी था; जो अत्यंत गरीब एवं पिछड़ी जाति बावा से ताल्लुक रखते थे। ने AIIMS चौराहे पर मंडल आयोग के विरोध में आत्मदाह की कोशिश की। बाद में बुरी तरह जल जाने के कारण उनकी मौत हो गई। उस वक्‍त मीडिया ने उसे मंडल आयोग विरोधी आंदोलन का हीरो बना दिया था। आज उसी जगह को आधिकारिक तौर पर राजीव चौक मेट्रो स्टेशन के नाम से जाना जाता है।

 

इस घटना ने यह सोचने के लिए मजबूर किया कि पिछड़े वर्ग के लोगों ने आयोग की सिफारिश एवम् अपने सामाजिक स्थिति की जानकारी के बगैर मंडल आयोग का विरोध किया। पूरे देश में यह पहली बार हुआ कि पिछड़ा वर्ग अपने हितों (अहित नहीं) के विरोध में आंदोलित हो उठा। यदि प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को छोड़ दें तो कोई भी OBC संगठन उस वक्त समर्थन में था ऐसे तथ्य नहीं मिलते हैं। यह बात जरूर है कि अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के कुछ संगठन इसका समर्थन कर रहे थे।

 

मुझे याद है कि सरकार ने इसे बड़ी तेजी से लागू किया सरकारी नौकरी भर्ती परीक्षाओं में जो आवेदन मंडल आयोग लागू होने से पूर्व भरे जा चुके थे। परीक्षा के दिन मौके पर ही पिछड़ा वर्ग के परीक्षार्थियों द्वारा फार्म भरवा कर उन्हें आने जाने का किराया दिया गया जो दलित आदिवासी परिक्षार्थियों के पहले से मिलता था और जाति प्रमाणपत्र जमा करने का शपथ लिया गया। नौकरी में 27 प्रतिशत आरक्षण मिलते ही OBC को अपनी गलती का तुरंत एहसास होने लगा।

 

आरक्षण समेत अन्य सुविधाएं जो मंडल आयोग की सिफारिश में शामिल थी। लागू होने के कारण OBC में सामाजिक, राजनीतिक हलचल प्रारंभ हो गई। सिफारिशें लागू होने के कारण जो डायरेक्ट फायदा हुआ मैं उससे ज्यादा महत्वपूर्ण उसके इनडायरेक्ट फायदे को मानता हूं। जो कि भारत के इतिहास में कम से कम सामाजिक इतिहास में विलक्षण था।

 

आइए मैं आपको बताने की कोशिश करता हूं कि वह अपरोक्ष लाभ क्या हैं ?

 

  • पिछड़ा वर्ग में सामाजिक चेतना का प्रचार होने लगा पहले सामाजिक रूप से अपमानित होने के बावजूद समान होने के भ्रम में जी रहे थे वह भ्रम टूटने लगा।

  • पिछड़ा वर्ग के लोग बीपी मंडल को बुरा-भला कहते थे, उन्हें गालियां बकते थे, अब उन्हें पूजने लगे। उनका एहसान मानने लगे।

  • इनके बीच कुछ ऐसे वैचारिक संगठन तैयार होने लगे जो सामाजिक भेदभाव की मुखालिफत करते थे।4 जिन दलित आदिवासियों को वह अपना शत्रु समझते थे, अब उनके बीच वैचारिक दूरियां खत्म होने लगीं।

  • जो OBC केवल धार्मिक रीति रिवाज को सामाजिक चेतना का पर्याय समझ रहे थे। महात्मा फुले, डॉ. आंबेडकर तथा बीपी मंडल को अपना मार्गदर्शक मानने लगे।

इसी तारतम्य में तमाम OBC पत्रिकाएं, किताबें प्रकाशित होने लगीं। दक्षिण के अयंगकाली, पेरियार से लेकर उत्तर के कर्पूरी ठाकुर, कबीर को फिर से पढ़ा जाने लगा। आज जिस प्रकार सामाजिक धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा दिया जा रहा है। मैं मानता हूं कि यह इस OBC क्रांति की प्रतिक्रांति है। जो अपनी अंतिम सांसे गिन रही है। हालांकि यह चेतना अभी शुरुआती है, लेकिन इसकी पेट गहरी है। धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक उन्माद के ठेकेदारों को करारा जवाब देती है। जिसकी जमीन मंडल आयोग की सिफारिशों ने तैयार की और फुले, आंबेडकर की विचारधारा ने इस जमीन को सींचा है।


लेखक परिचय :- जन्म 12 फरवरी 1973 को बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में हुआ। शिक्षा एमए, एलएलबी। आप देश में चोटी के दलित लेखकों में शुमार किए जाते हैं और प्रगतिशील विचारक, कवि, कथाकार, समीक्षक, आलोचक एवं पत्रकार के रूप में भी जाने जाते हैं। आपकी रचनाएं देश की लगभग सभी अग्रणी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकीं हैं। “सफाई कामगार समुदाय” एवं “आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग”, “दलित चेतना और कुछ जरुरी सवाल” आपकी चर्चित कृतियों में शामिल है। आपकी किताबों का मराठी, पंजाबी, ओडिया सहित अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। आपकी पहचान मिमिक्री कलाकार और नाट्यकर्मी के रूप में भी स्थापित है। छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य सम्मेलन से निबंध विधा के लिए पुर्ननवा पुरस्कार सहित आप कई पुरस्‍कार एवं सम्मान से सम्मानित किए जा चुके हैं।

 


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