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भारतीय समाज की रूढ़िवादी परंपरा में बदलाव आवश्यक | Newsforum

©द्रौपदी साहू (शिक्षिका), कोरबा, छत्तीसगढ़

परिचय- गाइडर जय भारत इंग्लिश मीडियम हाई स्कूल, जिला उपाध्यक्ष- अखिल भारतीय हिंदी महासभा.


 

भारतीय समाज में चली आ रही रूढ़िवादी परंपरा का दंश आज भी गाहे-बगाहे सामने आते रहता है। आज मनुष्य भले ही चांद पर चला गया है लेकिन संकिर्ण मानसिकता की बेड़ियां पांव में आज भी बंधी हैं। समाज में शिक्षित वर्ग के लोग पढ़ी-लिखी बहू तो चाहते हैं लेकिन घर के देहरी लांघे वे आज भी इसके पक्ष में नहीं है। समाजिक रूढ़िवादी परंपराओं की जकड़न में फंसी एक महिला के उहा-पोह को बताता यह लेख … पढ़ें, मार्मिक चित्रण।

 

हमारे समाज में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती आ रही रूढ़िवादी परंपरा में बदलाव आवश्यक है। आज के युग में महिला, पुरुष से भी आगे निकल चुकी है, हर क्षेत्र में अपनी भूमिका बखूबी निभा रही है। किंतु समाज में आज भी महिलाओं को पूरा सहयोग नहीं मिल पाता है। जिससे वे आगे नहीं बढ़ पाती हैं। यदि परिवार और समाज साथ दे तो महिलाएं अपने दायित्वों का निर्वाह और भी अच्छे से कर सकेंगी और अपने परिवार व समाज का नाम रोशन करेंगी।

 

आज जिस तरह महिला और पुरुष दोनों को समान रूप से शिक्षा दी जा रही है, उसी तरह हर क्षेत्र में समानता हो। कई बार ऐसा होता है कि तुम एक महिला हो कहकर उन्हें कोई भी नौकरी करने से भी मना कर देते हैं। महिला यदि पुलिस या आर्मी में काम करना चाहती है तो उसे ‘तुम महिला हो नहीं कर सकती’ कहकर उन्हें पुलिस या आर्मी में काम करने जाने नहीं देते। दूसरी नौकरी के लिए भी मना कर देते हैं। पढ़ लिख लिए, अब शादी का समय हो गया है, घर संभालना कहकर उसकी शादी भी कर देते हैं। महिला शादी होकर दूसरे घर में जाती है, वहां भी उसे परिवार का साथ नहीं मिल पाता है और उसके सपने अधूरे रह जाते हैं। अगर आगे और पढ़ना चाहेगी फिर भी उसे पढ़ने नहीं देते, कहते हैं कि शादी तो हो गई अब तो यहीं रहना है, पढ़कर क्या करेगी? और इसी वजह से आगे नहीं बढ़ पाती और उसकी प्रतिभा से भी लोग अवगत नहीं हो पाते हैं।

 

ससुराल में देवरानी-जेठानी हैं तो घर का सारा काम देवरानी को ही सौंप दिया जाता है। और जेठानी बाहर का काम, खेती-बाड़ी या अन्य काम करती है। एक ही महिला को चाय-नाश्ता, दोपहर का खाना, रात का खाना, झाड़ू-पोछा, बर्तन साफ करना; इस तरह सारे काम परिवार में एक ही करे तो पूरा दिन इन्हीं कामों में समय निकल जाता है। उसके खुद के लिए या बच्चों को पढ़ाने-लिखाने तक के लिए भी समय नहीं बचता।

 

दूसरी बात यह कि इसका नकारात्मक प्रभाव उसके शरीर पर और दिमाग पर पड़ता है। जिसके कारण उनमें चिड़चिड़ापन आ जाता है और परिवार में एक दूसरे के प्रति प्रेम भावना भी खत्म हो जाती है और इस तरह से परिवार में झगड़े शुरू हो जाते हैं और फिर बंटवारा हो जाता है। यदि घर और बाहर का काम मिलजुलकर करें तो किसी एक पर काम का बोझ अधिक नहीं होगा और काम को लेकर कोई विवाद भी नहीं होगा और प्रेम व्यवहार बना रहेगा।

 

यदि घर में देवरानी-जेठानी, बहू-बेटी पढ़ना चाहती है या नौकरी करना चाहती है तो हमें उनका पूरा-पूरा साथ देना चाहिए। उनमें प्रतिभा है तो उस प्रतिभा को आगे लाना चाहिए। सकारात्मक सोच से सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और घर का वातावरण भी खुशनुमा रहता है। महिलाएं जब ससुराल जाती हैं तो उन्हें बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। एक तो वे उस परिवार से परिचित नहीं रहती है। दूसरे परिवार में जेठ, सास-ससुर, मामा आदि के सामने हमेशा घूंघट में रहना पड़ता है। यदि कभी गलती से सिर से घूंघट हट जाए तो उन्हें सास-ससुर से खरी-खोटी सुननी पड़ जाती है। यहां तक कि ससुराल में हंसने पर भी प्रतिबंध रहता है।

 

“मैं” जब शादी होकर गई थी, दो-तीन दिन ही हुए थे, मुझे मेरी सहेली का फोन आया और उसने हंसी वाली बात कह दी, जिससे मैं खिलखिला कर हंस पड़ी। तब ससुराल में मुझे सब देखने लगे कि कैसे हंस रही है। फिर थोड़ी देर में नानी सास बोली कि इस तरह ससुराल में नहीं हंसते हैं। इसी तरह कई सारी चीजों में उन्हें मनाही रहती है। एक और अनुभव में बताना चाहुंगी। मैं जब शादी होकर गई, मेरी पढ़ाई तो पूरी हो गई थी सिर्फ बीएड की पढ़ाई बाकी थी और उसके लिए भी फार्म भर चुकी थी लेकिन, शादी के बाद ससुराल वाले मुझे पढ़ाने से मना कर दिए लेकिन, मैंने जिद किया कि मैं पढ़ूंगी। तब सभी मुझसे गुस्से में बात करने लगे।

 

मैंने पढ़ाई की, इसके लिए मुझे सहयोग भी नहीं किया गया। ना ही पढ़ाई के लिए पैसे ही दिए गए और जब पढ़ाई के लिए गई तो मुझे घर से निकाल दिया गया और बोले कि जाओ दोबारा यहां मत आना। जब नौकरी लगेगी तभी आना। इस तरह ससुराल में कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। परिवार और समाज को महिलाओं की योग्यता और प्रतिभा को समझना चाहिए और उन्हें आगे लाना चाहिए। इसलिए पुराने रूढ़िवादी परंपरा में बदलाव बहुत आवश्यक है।


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