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माकपा की चाहत है राम और रामायण भी | ऑनलाइन बुलेटिन

©के. विक्रम राव, नई दिल्ली

-लेखक इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (IFWJ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।


 

कभी बाह्मण—कायस्थों का दल रही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी अब बदल गयी है। कन्नूर (केरल) में कल (10 अप्रैल 2022) को हुए अपने 23वें अधिवेशन में इतिहास में पहली बार माकपा ने एक दलित (डोम जाति) के रामचन्द डोम को शीर्ष समिति पोलित ब्यूरो का सदस्य चुना है। यूं माकपा में दलित विधायक और सांसद रहे पर उच्च पदाधिकारी कभी नहीं। माकपा के तीसरी बार महासचिव लगातार निर्वाचित तेलुगुभाषी सीताराम येचूरी, नियोगी विप्र है जिनके पूर्वज अमूमन आंध्र इतिहास में राजे—सामंतों के अमात्य पद पर सेवा देते रहे। हालांकि कम्युनिस्ट पार्टी के सौ साल हो गये और आज (11 अप्रैल 2022) माकपा का 58वां स्थापना दिवस है, माकपा तब टूटी थी। रामचन्द पांच साल पार्टी से बड़े हैं। अपने चयन को रामचन्द डोम ने ऐतिहासिक नहीं बताया। ”सामान्य” कहा।

 

छात्र राजनीति से उभरे रामचन्द वीरभूम क्षेत्र के चिल्ला गांव में पढ़े तथा उन्होंने डाक्टरी (एमबीबीएस) डिग्री ली। आपातकाल (1975—77) में माकपा के सदस्य बने। वे लोकसभा का चुनाव जीते मगर फिर ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस के अनुपम हाजरा से बोलपुर क्षेत्र से पराजित हो गये। रामचन्द डोम सांसद बनकर भी सादगीभरा जीवन जीते हैं। काठ के कारीगरों और बढ़ई परिवार के रामचन्द आज भी साइकिल पर चलते हैं। लोकसभा में (27 फरवरी 2004) नोयडा में बंगलाभाषी निवासियों को यातना देने के मसले को व्यापक रुप से संसद में उठाया था।

 

जैसा कि डा. रामचन्द के जातिसूचक उपनाम ”डोम” के शब्द का शब्दकोषीय अर्थ है : ”अस्पृश्य जाति जो पंजाब से लेकर बंगाल तक सारे उत्तरी भारत में पायी जाती है। स्मृतियों में इस जाति का उल्लेख नहीं मिलता। केवल मत्स्यसूक्त तंत्र में डोमों को अस्पृश्य लिखा है। कुछ लोगों का मत है कि वे डोम बौद्ध हो गये थे और इस धर्म का संस्कार इनमें अब तक बाकी है। इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी समय यह जाति प्रबल हो गयी थी, और कई स्थान डोमों के अधिकार में आ गये थे।

 

गोरखपुर के पास डोमनगढ़ का किला डोम राजाओं का बनवाया हुआ था। पर अब यह जाति प्राय: विकृत कर्मों ही के द्वारा अपना निर्वाह करती है। श्मशान पर शव जलाने के लिये ज्ञान देना, शव के ऊपर कफन लेना, सूप, डले आदि बेचना आजकल डोमों का काम है। राजा हरिशचन्द्र भी कुछ अवधि तक डोम बने थे।”

 

कल सम्पन्न हुए माकपा अधिवेशन में करीब 98 वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री, अच्युतानन्दन और पिनरायी विजयन के घने आलोचक को केन्द्रीय समिति से हटा दिया गया। उन्हें केवल विशिष्ट आमंत्रित ही नामित किया गया है।

 

कौन रहे ये अच्युतानन्दन ? उनसे और मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन से छत्तीस का रिश्ता कैसे बना?

 

वेलिक्काकथु शंकरन अछूतानन्दन नितान्त नेक और नैतिक व्यक्ति हैं। 80 सालों से कम्युनिस्ट रहे, 17 की किशोरावस्था में पार्टी के सदस्य बन गये थे। आज के नवउदारवादी दौर में भी उनकी अक्षुण्ण अवधारणा है कि कम्युनिस्ट को भ्रष्टाचारी नहीं होना चाहिए। मगर अच्युतानन्दन की तुलना में माकपा नेतृत्व के मनपसन्द और प्रीतिपात्र है केरल इकाई के सचिव 64—वर्षीय पिनरायी विजयन जो सीबीआई की अदालत में 4 अरब रूपये के गबन के मुकदमें में आरोपी हैं। प्रकाश करात तथा सीताराम येचुरी इसीलिये विजयन को तरजीह देते हैं क्योंकि सर्वहाराओं की पार्टी को उन्होंने मालामाल बना दिया है।

 

भारी भरकम बैंक बैलेंस, बड़े होटल और मनोरंजन रिसार्ट, कई विशाल भूखण्ड तथा बहुमंजलीय इमारतें, दो टीवी नेटवर्क, बहुसंस्करणीय दैनिक, आलीशन निजी आवासीय बंग्ले आदि की अरबों की सम्पति की स्वामिनी केरल माकपा है। जनसाधारण की ज्वलन्त समस्याओं पर गहन मंथन माकपा सागरतटीय पंच सितारा होटलों में आयोजित करती है। संयोजक विजयन होते हैं। मगर ऐसी सम्पन्नता ने माकपा को विपन्न बना दिया था। तब लोकसभा चुनाव में वह 16 सीटें हार गई थी। मात्र 4 बमुश्किल जीत पाई।

 

इस बीच सीताराम येचूरी की दबी जुबान से आलोचना भी होती रही है। माना जाता है कि माकपा पर भी भगवान राम का प्रभाव पड़ने लगा है। माकपा ने अनुषांगिक संगठन ”संस्कृत संघम” ने ज्ञानी ब्राह्मणों को जोड़ना प्रारम्भ किया है। रामायण अब माकपा की नजर में साहित्यिक कृति है। रामायण मास का भी माकपा आयोजन कर चुकी है। यह प्रगतिशील परिवर्तन माकपा में 2009 में हुआ था जब इसके लोकसभाई फीसद 43 से घटकर मात्र 16 रह गये थे। तब भाजपा का प्रभाव फैल रहा था। माकपा की मान्यता बनी कि ”हिन्दुओं के वोट पाने हेतु राम को दूर रखना हितकारी नहीं होगा।” हालांकि माकपा की आलोचना हुयी थी जब एक महिला ग्राम पंचायत अध्यक्ष से पदत्याग कराया गया, क्योंकि इस 25 वर्षीया महिला मणिमाला ने अपने ड्राइवर जयन से शादी रचायी। अर्थात वर्ण विषमता से माकपा भी ग्रसित रही।

 

इसी माह माकपा को एक अपसंस्कृति का झटका लगा जब केरल पार्टी के सचिव कोडियारी बालकृष्णन के पुत्र विनीश को कर्नाटक के नशीले पदार्थ तस्करी विरोधी केन्द्रीय ब्यूरो ने अवैध तस्करी के अपराध में कैद किया था। अर्थात चाहे वामपंथ हो अथवा दक्षिणपंथ जब धनोपार्जन की आवश्यकता होती है तो माध्यम दोनों के सदृश ही होते है।

 

इस अवधारणा को एक फ्रेंच दार्शनिक ज्यांपाइरे फायरो ने बड़े सटीक तरीके से पेश किया है। उनकी राय में स्वयं घोर वामपंथी तथा अतिवादी दक्षिणपंथी मिलकर घोड़े की चन्द्राकार नाल की भांति हैं। अंतत: आकार में अपने दोनों छोर में नजदीक आ ही जाते हैं।


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