.

कैसा श्रमिक दिवस ? भाग- एक | ऑनलाइन बुलेटिन

©के. विक्रम राव, नई दिल्ली

-लेखक इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (IFWJ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।


 

 कल (1 मई 2022) को यूपी प्रेस क्लब में मोदी सरकार के चारों नये लेबर कोड पर चर्चा हुयी। गत 2 वर्षों में कोविड के कारण समारोह स्थगित रहा था। विगत 100 वर्षों में नाना बिखरे श्रम कानूनों को इन कोड की 69 धाराओं में संकलित किया गया। संसद द्वारा पारित हुआ। अपने श्रमजीवी पत्रकार—श्रोताओं को राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते मैंने बताया कि इन कोड द्वारा मई दिवस की मूलभूत अवधारणा का हनन कर डाला गया है। अमेरिका में शिकागो के हेव मार्केट में (मई 1886 में) मजदूर संघर्ष हुआ था। काम के घंटे बारह से घटाकर आठ कर दिये जायें ताकि मेहनतकाशों की आयु दीर्घ हो सकें। स्वास्थ्य निरोग हो। मोदी सरकार के इस कोड ने उसे बिलकुल उलट दिया। आर्थिक सुधार की ओट में श्रमिकों का शोषण तेज हो गया।

ऐसा अभिमत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आनुषंगिक घटक भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) का है। वामपंथी और समाजवादियों की बात तो दीगर है। बीएमएस की स्थापना संघ के पुरोधा स्व. दत्तोपंत थेंगडी ने की थी। मुखिया मोहन भागवत ने अधिवेशन का उद्घाटन किया था। इसके संगठन मंत्री केसी मिश्र ने सार्वजनिक तौर पर प्रधान मंत्री से कहा था : ” यदि आप मजदूरों की मदद नहीं कर सकते, तो उन्हें जो मिल रहा है उन्हें मत छीनिये।” (इंडियन एक्सप्रेस ‘ 31 मई 2015)।

 

बीएमएस के आंकलन में मोदी सरकार श्रमिक— विरोधी है। बीएमएस के तत्कालीन महासचिव ब्रजेश उपाध्याय ने भर्त्सना भी की थी (चेन्नई ​दैनिक, ”दि हिन्दु”: सात अक्टूबर 2020)। जेनेवा—स्थित अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) में उन्होंने प्रतिरोध व्यक्त करने का सुझाव भी दिया था। बीएमएस के पूर्व महासचिव विनय सिन्हा ने (अगस्त 2021) मोदी सरकार के NATIONAL MONETISATION PIPELINE (NMP) का कड़ा विरोध किया था।

 

इस नीति के तहत सड़क मार्ग, रेल, ऊर्जा, तेल—गैस पाइपलाइन, संचार और नागरिक उड्डयन की छह लाख करोड़ की पूंजी राशि को अन्यत्र न्यस्त्त हेतु व्यय किया जाये। इसे बीएमएस ने ”घर का सोना नीलाम करने की संज्ञा दी थी।” अल्पकालीन अस्थायी प्रधानमंत्री ठाकुर चन्द्रशेखर सिंह के वित्त मंत्री यशवंत सिनहा (रांची वाले) ने यही किया था। जब भारत का सोना लंदन की गलियों में नीलाम कर दिया गया था। तब मजदूरों की दिवाली नहीं दिवाला की आशंका उभरी थी।

 

नया लेबर कोड इन्हीं कारणों से आतंक और सिहरन जन्माता है। श्रम विषयक संसदीय समिति के समक्ष इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नालिस्ट (आईएफडब्ल्यूजे) की ओर से महासचिव साथी विपिन धूलिया (नयी दिल्ली) के साथ मैं संसद कक्ष में पेश हुआ था। हमारा विरोध इस पर था कि मीडिया को ही किसी विशेष कानून में बांधने की जरुरत क्यों पड़ी ? समिति अध्यक्ष थे उड़ीसा के पुराने दैनिक ”प्रजातंत्र” के संपादक तथा बीजू जनता दल के सांसद डा. भर्तृहरि महताब। उनके पिता स्व. डा. हरेकृष्ण महताब गांधीवादी संपादक तथा राज्य के मुख्यमंत्री रहें।

 

भाजपायी सांसदों के दबाव से घिरे डा. महताब की लाचारी मैं समझ गया। फिर तीन सौ तीन लोकसभाईयों की भाजपा के सामने किसकी कैसे चलती ? यूं भी थैलीशाहो का दबदबा तो सरकार पर स्पष्ट गोचर है।

 

हालांकि चन्द प्रावधान इन कोड में भले हैं। मसलन प्रति पांच वर्ष पर वेतन मान स्वत: परिमार्जित किये जायेंगे। अभी श्रमिकों को वेतन बोर्ड हेतु आन्दोलन करना पड़ता है। हर कर्मचारी को पदनाम के साथ नियुक्तिपत्र दिया जायेगा। कार्मिकों की सेवाशर्तों में नर—नारी का भेद दूर किया जायेगा। एकीकृत कानून के कारण अब कानूनी पेंच घटेंगे।

 

part 1 of 2

 

 


Back to top button