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बहुजन समाज में क्रांति की चिंगारी पैदा करने वाले साहब कांशीराम…

(मान्यवर साहब के जन्म दिवस 15 मार्च पर विशेष)

Rajesh Kumar Buddh,
राजेश कुमार बौद्ध

©राजेश कुमार बौद्ध

परिचय- संपादक, प्रबुद्ध वैलफेयर सोसाइटी ऑफ उत्तर प्रदेश


 

बाबा साहब ने अपने लोगों के लिए किताबें एकत्रित की थी,मैं अपने लोगों को एकत्रित कर रहा हूँ। बाबा साहब ने सदियों से प्रताड़ित लोगों को स्थापित करने का ब्लू प्रिंट दिया था,मैं उसको हकीकत के धरातल पर उतार रहा हूँ। यह कहना था पंजाब के रोपड़ में 15 मार्च 1934 को रामदासिया परिवार में पैदा हुए कांशीराम जी।

 

बाबा साहब द्वारा दिये आरक्षण की बदौलत कांशीराम जी को फर्स्ट क्लास नौकरी मिल गई और पुणे की रक्षा प्रयोगशाला में पदस्थापन हो गया। बताया जाता है कि मान्यवर कांशीराम जी ने बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी की जयंती मनाने की तैयारी की मगर साथी स्वर्ण कर्मचारियों ने कार्यक्रम करने से रोक दिया।जिस महामानव के कारण नौकरी मिली और उसको सम्मान न दे पाने की पीड़ा ने उनको इतना विचलित किया कि उन्होंने नौकरी से इस्तिफा ही दे दिया।

मान्यवर कांशीराम जी ने 1978 मे अपने सहकर्मी डीके खापर्डे के साथ मिलकर बामसेफ की स्थापना की। कांशीराम साहब ने घर छोड़ दिया। घर त्यागने से पहले परिवार के लिए वे एक चिट्ठी छोड़ गए थे। इसमें उन्होंने लिखा था, ” अब कभी वापस नहीं लौटूंगा ” और वो कभी नहीं लौटे न घर बसाया और न ही कोई संपत्ति बनाई परिवार के सदस्यों की मृत्यु पर भी वे घर नहीं गए। परिवार के लोग कभी लेने आए तो उन्होंने जाने से मना कर दिया। तीन साल पैदल व साइकिल यात्राओं से मीलों का सफर तय किया और लाखों लोगों को साथ जोड़ा और 1981 में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति अर्थात DS4 का निर्माण किया। 

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कांशीराम साहब ने बाबा साहब डॉ अम्बेडकर जी की उस बात को दिमाग मे लेकर चल रहे थे जब बाबा साहब डॉ अम्बेडकर जी ने कहा था कि अकेला मैं इतना कुछ कर सकता हूँ तो मेरे समाज के100 पढ़े- लिखे समाज के लिए खड़े हो जाएंगे तो मेरा समाज मुख्यधारा में आकर सत्तासीन हो जाएगा। जागरूकता व एकता की रफ्तार को देखते हुए ब्राह्मणवादी लोगों के कान खड़े हुए और अपनी पार्टियों में दलित नेताओं को शामिल करके कांशीराम जी के आंदोलन को कमजोर करना शुरू कर दिया।

 

साहब कांशीराम जी ने 1982 में एक किताब लिखी जिसका शीर्ष था “The chamcha age” यानी “चमचों का युग”। उसमे उन्होंने विस्तार से लिखा ” जब-जब कोई दलित संघर्ष मनुवाद को अभूतपूर्व चुनौती देते हुए सामने आता है तब – तब ब्राह्मण वर्चस्व वाले राजनीतिक दल जिनमें कांग्रेस भी शामिल है दलित नेताओं को सामने लाकर साहब के आंदोलन को कमज़ोर करने का काम करते हैं।

 

साहब कांशीराम ने लिखा है, ‘ दलाल, पिट्ठू अथवा चमचा बनाया जाता है। चमचों की मांग तब होती है। जब कोई लड़ाई, कोई संघर्ष और किसी योद्धा की तरफ से कोई ख़तरा नहीं होता तो चमचों की ज़रूरत नहीं होती,उनकी मांग नहीं होती। प्रारंभ में उनकी उपेक्षा की गई। किंतु बाद में जब दलित वर्गों का सच्चा नेतृत्व सशक्त और प्रबल हो गया तो उनकी उपेक्षा नहीं की सजा सकी। इस मुक़ाम पर आकर,ऊंची जाति के हिंदुओं को यह ज़रूरत महसूस हुई कि वे दलित वर्गों के सच्चे नेताओं के ख़िलाफ़ चमचे खड़े करें।”

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साहब कांशीराम जी ने 1984 में राजनैतिक पार्टी की स्थापना की और नाम रखा ” बहुजन समाज पार्टी “, कांशीराम जी चुनाव लड़ने के लिए बिना हार-जीत की चिंता किये इलाहाबाद, इटावा से लेकर होशियारपुर तक चुनाव लड़ते रहे!

 

कांशीराम जी के ऊपर कई तरह के बेतुके गठबंधन करने या तोड़ने के आरोप लगे मगर मान्यवर साहब कहते रहे कि मैं अपने समाज को सत्ता के शिखर पर ले जाने के प्रयास में समझौते करता हूँ न कि गठबंधन करके सामने वाले राजनैतिक दल का गुलाम। कांशीराम साहब के राजनैतिक दांवपेंच से न केवल दलित की बेटी मायावती सबसे बड़े सूबे की मुख्यमंत्री बनी, और पत्रकार आशुतोष गुप्ता को पड़ी थप्पड़ मनुवादी मीडिया को आइना दिखाती रही।

 

बताया जाता है कि पंडित अटलबिहारी वाजपेयी ने मान्यवर कांशीराम को समर्थन के बदले राष्ट्रपति का पद ऑफर किया था मगर साहब कांशीराम जी ने इसको ठुकरा दिया। इन्होंने इशारों ही इशारों में बताया कि मैं राजनैतिक संतुष्टि के लिए नहीं बल्कि मेरे समाज की महत्वाकांक्षाओं के पद अर्थात प्रधानमंत्री पद के लिए लड़ रहा हूँ!

 

आज साहब कांशीराम जी की बसपा नहीं रही है। आज की बसपा राजशाही ठाठ व त्याग और समर्पण को छोड़कर भाई आनंद के सैंकड़ों करोड़ रुपये की अघोषित आय के तले दबी हैं बसपा। मान्यवर साहब अक्सर रैलियों में जेब से पेन निकालकर कहा करते थे आप लोग कलम हो और ब्राह्मणवादी लोग इसके ऊपर का ढक्कन।” तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार ।” वाले तीखे नारों की जगह मायावती के नए नारे ” हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु-महेश है ” नारों ने ले ली तो लाखों मिशनरी कलमों के ऊपर मिश्रा रूपी ढक्कन लगा दिया गया है।

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कांशीराम जी नब्बे के दशक के मध्य से एक तरफ डायबिटिक व दिल की बीमारियों से जूझते रहे तो दूसरी तरफ मनुवादियों के षड्यंत्रों के खिलाफ दलित-पिछड़ों की राजनैतिक चेतना को जगाते रहे। जब 9अक्टूबर 2006 को रुखसत हुए तो वसीयत के रूप में 2 जोड़ी कपड़े थे और उन पर दावा करने वाला कोई परिवार का सदस्य सामने नहीं आया।

 

त्याग, समर्पण के साथ दलित- पिछड़ों को अधिकारों और राजनैतिक चेतना की चिन्गारी पैदा करने वाले मान्यवर कांशीराम साहब जी के जन्म दिवस पर कोटि कोटि नमन करते हैं।

 

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