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1 मई से नये शिक्षा सत्र की शुरुआत उचित नहीं l ऑनलाइन बुलेटिन

©द्रौपदी साहू 

परिचय- कोरबा, छत्तीसगढ़


 

छत्तीसगढ़ शासन स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा समस्त सरकारी एवं गैर-सरकारी, अनुदान प्राप्त एवं गैर अनुदान प्राप्त विद्यालयों में पूर्व निर्धारित ग्रीष्म कालीन अवकाश 1 मई से 15 जून तक को संशोधित करके 15 मई से 15 जून कर दिया गया है।

 

यह निर्णय कोरोना महामारी से प्रभावित शिक्षण को देखते‌ हुए ली गई है, किन्तु यह निर्णय सर्वथा उचित नहीं है, क्योंकि मई के महीने में तेज धूप व गर्मी पड़ती है। जिसके कारण लोग काफी बीमार पड़ते हैं और घर से‌ निकलने में कतराते हैं।

 

अप्रैल माह से ही गर्मी तेज होने लगती है और 15 अप्रैल के बाद से गर्म हवा और तेज धूप के कारण तापमान काफी बढ़ जाता है जिसके कारण स्वास्थ्य प्रभावित होता है। अभिभावक अपने बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता में उन्हें विद्यालय नहीं भेजते हैं।

 

अप्रैल के महीने में कलेक्टर के आदेशानुसार तीन से चार घंटे के लिए सुबह ही विद्यालय लगाया जाता है ताकि दोपहर के तेज धूप और लू से बचा जा सके, किन्तु इन दिनों सुबह से ही तेज गर्मी का एहसास होने लगता है और बिना पंखे – कूलर के रहना मुश्किल होता है।

 

कुछ विद्यालयों में पंखे की व्यवस्था होती है, किंतु सभी विद्यालयों में नहीं होती। सरकारी विद्यालयों में तो पंखा सिर्फ नाम मात्र का होता है। कक्षा में यदि लगा हुआ है तो वह चालू हालत में नहीं रहता और यदि चालू हालत में मिल भी गया तो उसकी गति बहुत धीमी रहती है।

 

बिगड़े हुए पंखे को बनवाने या सुधरवाने के लिए भी कोई ध्यान नहीं दिया जाता। जिसके कारण बच्चों को कक्षा में बिना पंखे के बैठना पड़ता है। इस तरह गर्मी के कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़़ता है।

प्रशासन के अधिकारी व कर्मचारी सर्व सुविधायुक्त ए.सी. व पंखे-कूलर की हवा में बैठकर काम करते हैं। उन्हें गर्मी का उतना एहसास नहीं होता। वे जो भी आदेश या निर्देश जारी करते हैं उन्हें वास्तविक स्थिति का आभास होना चाहिए।

 

वे किसी विद्यालय में उस दौरान निरीक्षण के लिए भी जाते हैं तो ए.सी. वाले कार में बैठ कर जाते हैं। उन्हें कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। जब वे विद्यालय पहुँचते हैं और कक्षा में प्रवेश करते हैं तो उन्हें बच्चों की संख्या कम नज़र आती है, इसमें भी वे शिक्षक को ही दोषी मानने लगते हैं, जबकि शिक्षक की कोई गलती नहीं रहती है, बल्कि वे प्रयासरत रहते हैं कि बच्चों की उपस्थिति शत्-प्रतिशत हो।

 

अप्रैल व मई के महीने में सगाई-शादी के विभिन्न कार्यक्रम होते हैं जिससे बच्चे विद्यालय जाने के बजाय अपने अभिभावकों के साथ उन कार्यक्रमों में शामिल होना पसंद करते हैं। इसके कारण भी विद्यालय में बच्चों की उपस्थिति बहुत कम रहती है।

 

ग्रामीण व पहाड़ी क्षेत्रों में अधिकांश लोग महुआ बीनने, तेंदू- चार तोड़ने व तेंदूपत्ता संग्रहण के काम में लगे रहते हैं और उनके बच्चे भी उनके साथ उन कार्यों में लगे होते हैं। इस कारण भी ऐसे विद्यालयों में बहुत कम बच्चे विद्यालय जाते हैं।

 

बच्चों की वार्षिक परीक्षा के बाद विद्यालय में उनकी उपस्थिति 50 फीसदी हो जाती है और जैसे-जैसे गर्मी बढ़ते जाती है, वैसै-वैसे विद्यालय में उनकी उपस्थिति कम होते जाती है। इस तरह केवल 10 से 20 फीसदी बच्चे ही उपस्थित हो पाते हैं। अतः इन सभी तथ्यों को देखते हुए, 15 मई तक बच्चों की कक्षा लगाना उचित नहीं है।


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