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मराठा आरक्षण फैसले का प्रभाव क्या आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए रिजर्वेशन के विरुद्ध दायर मामले पर पड़ेगा ? विनोद कुमार | Newsforum

©विनोद कुमार कोशले, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

परिचय : सामाजिक चिंतक व विश्लेषक, एट्रोसिटी एक्ट, सुप्रीम कोर्ट व हाइकोर्ट में आरक्षण मामले निर्णय के विश्लेषक, कोर मेंबर, सोशल जस्टिस एंड लीगल फाउंडेशन संगठन छत्तीसगढ़, जन्म स्थान- सारंगढ, जिला रायगढ़.


 

मराठा कोटा मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने आरक्षण के लिए 50 प्रतिशत सीलिंग सीमा को दोहराया है एवं इंदिरा साहनी मामले में 9 जजों की बेंच के फैसले पर दोबारा गौर करने की याचिका को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मराठा कोटा को यह कहकर टाल दिया कि 50 प्रतिशत से अधिक सीलिंग सीमा के लिए असाधारण परिस्थिति नहीं थी। यहां आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए मिले 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस कोटा की वैद्यता पर भी चर्चा करने की जरूरत है।

 

103 वां संविधान संशोधन ने आर्थिक आरक्षण पेश किया। यह संशोधन ईडब्ल्यूएस कोटा को मौजूदा कोटा सीमा से परे जाने की अनुमति देता है। 103 वां संविधान संशोधन प्रावधान के अनुसार ईडब्ल्यूएस कोटा एससी, एसटी व ओबीसी के लिए मौजूद आरक्षण के अतिरिक्त होगा। तो क्या मराठा कोटा मामले में 5 जजों की संविधान पीठ द्वारा 50 प्रतिशत सीलिंग सीमा को बरकरार रखने वाला फैसला ईडब्ल्यूएस कोटा को उस सीमा तक प्रभावित करेगी जो सीलिंग सीमा से अधिक है।

 

ज्ञात हो कि 5 अगस्त 2020 को सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की बेंच ने ईडब्ल्यूएस कोटे को चुनौती देने वाली दलीलों को 5 जजों की संवैधानिक पीठ को भेजा है। जिसमें 50 प्रतिशत सीमा पार करने की बात कही गई है। जनहित याचिका यूथ फॉर इक्वलिटी की ओर से दायर किया गया है। इनका तर्क है कि यह संशोधन संविधान की मूल भावनाओं एवं अनुच्छेद 14 के तहत समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। साथ ही इंदिरा साहनी केस (मंडल केस) में आए फैसले 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा का भी उल्लंघन करता है। 1992 में इंदिरा शाहनी (मंडल जजमेंट) मामले में आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण को खारिज कर दिया था।

 

कोर्ट ने मराठा आरक्षण मामले में अवलोकन करते हुए कहा कि मराठा समुदाय को 50 प्रतिशत सीलिंग सीमा से अधिक आरक्षण देने में कोई असाधारण परिस्थिति नहीं है।

 

124 वां संविधान संशोधन विधेयक 2019 को संसद द्वारा 9 जनवरी 2019 को पारित किया गया। इसमें कहा गया कि इस संशोधन से आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को राज्य की सेवा में उच्च शिक्षा प्राप्त करने और रोजगार में भागीदारी सुनिश्चित करने का उचित अवसर मिलेगा।

 

103 वां संविधान संशोधन अनुच्छेद 15(6) व 16(6) नौकरियों व शिक्षा में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को आरक्षण प्रदान करता है। अनुच्छेद 15(6) शैक्षणिक संस्थानों आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान करने सक्षम बनाता है। इस संविधान संविधान से आरक्षण की ऊपरी सीमा अधिकतम 10 प्रतिशत तक होगी, जो मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त होगी।

 

103 वां संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका में ईडब्ल्यूएस 10 प्रतिशत आरक्षण को इंदिरा साहनी के फैसले दिए 50 प्रतिशत सीमा का उल्लंघन माना। इसके अनुसार समानता के सिद्धांत का कड़ाई से पालन करने एवं 50 प्रतिशत सीलिंग सीमा के उल्लंघन की अनुमति नहीं देने की बात कही गई।

 

केंद्र ने संशोधन का बचाव करते हुए कहा कि 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा केवल अनुच्छेद 15(4) अनुच्छेद 15(5), 16(4) के तहत किए गए आरक्षण पर लागू होती है। प्रस्तावना में लिखित सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक आधार पर सभी नागरिकों के लिए न्याय सुरक्षित करने के लिए हमेशा संवैधानिक संशोधन लाने के लिए रास्ता खुला है ताकि शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को बढ़ावा दिया जा सके और सार्वजनिक सेवाओं में इसका विरोध किया गया।

 

केंद्र ने आगे कहा- हालांकि 50 प्रतिशत नियम है लेकिन वहीं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से संबंधित समाज के सदस्यों के उत्थान के लिए मौजूदा विशेष परिस्थितियों को देखते हुए संविधान संशोधन करने से नहीं रोकेगा। इन सभी तर्कों के आधार पर मामले को 5 जजों की पीठ को भेज दिया गया है।

 

संविधान पीठ जो 103 वां संविधान संशोधन के खिलाफ चुनौती सुनती है और यह मराठा कोटा फैसले में आए तर्क के साथ जाने का फैसला करती हैं तो उसे निम्नलिखित बिंदुओं को तय करना पड़ सकता है।

 

  1. क्या 50 प्रतिशत सीलिंग सीमा अनुच्छेद 15(6) व अनुच्छेद 16(6) 103 संविधान संसोधन में द्वारा सम्मिलित है?
  2. क्या इंदिरा साहनी निर्णय आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण मौजूदा विशेष परिस्थितियों के मद्देनजर संविधानिक संशोधन पर रोक लगा दी है?
  3. .क्या 50 प्रतिशत आरक्षण सीलिंग सीमा जाति आधारित आरक्षण पर लागू है और आर्थिक आधार पर लागू नहीं?

 

(क्योंकि मराठा आरक्षण मामले हुए निर्णय अनुसार 50 प्रतिशत सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। क्योंकि यह ऐसे समाज को बढ़ावा देगा जो समानता पर आधारित नहीं, वे केवल जाति के नियम पर आधारित है)

 

4. क्या आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से संबंधित समाज के सदस्यों को आरक्षण प्रदान करने के लिए विशेष परिस्थितियों मौजूद है?

 

यहां एक बिंदु ध्यान रखना आवश्यक है कि सुप्रीम कोर्ट ने मराठा कोटा मामले में यह नहीं कहा कि 50 प्रतिशत सीलिंग सीमा को पार नहीं किया जा सकता है, इसे असाधारण परिस्थितियों होने पर पार किया जा सकता है। क्योंकि अदालत की सीमा पार करने के लिए व औचित्य साबित करने के लिए ऐसी कोई असाधारण परिस्थितियां नहीं मिली।

 

  1. क्या ईडब्ल्यूएस कोटे को सही ठहराने के लिए असाधारण हालात है?

 

अब जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी  के सिद्धान्त पर मांग उठानी पड़ेगी।

 

संविधान बनने के बाद से लेकर अब तक समय-समय पर सवर्णों द्वारा आरक्षण पर समीक्षा की बात की जाती रही है। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा के लिए एक गैर राजनीतिक समिति बनाने की मांग की थी।

 

आरक्षण का आधार आर्थिक नहीं

 

संविधान में आरक्षण का पैमाना सामाजिक असमानता है। किसी की आय या संपत्ति के आधार पर आरक्षण देने का कोई प्रावधान नहीं रहा। संविधान के अनुच्छेद 16(4) के मुताबिक आरक्षण किसी समूह को दिया जाता है। किसी व्यक्ति विशेष को आरक्षण देने का संविधान में कोई नियम नहीं है। इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई बार आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के फैसले पर रोक लगा चुका है। अपने पूर्व के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है।

 

9 जनवरी 2019 को संसद द्वारा 124 वां संविधान संसोधन पारित किया गया जो आर्थिक आरक्षण की बात करता है। यह आरक्षण उन वर्गों के लिए है जो मौजूदा आरक्षण के श्रेणी में नहीं आते। यहां कहना जरूरी है, 124 वां संविधान संसोधन से अपर कास्ट को आरक्षण मिलेगा, जो 1950 संविधान बनने के बाद से लेकर आज तक आरक्षण का विरोध करते आए हैं।

 

कई बार खारिज हो चुका है सवर्ण आरक्षण

 

वर्ष 1991 में मंडल कमीशन के ठीक बाद प्रधानमंत्री नरसिंहराव ने आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण का फैसला लिया था। इस फैसले को वर्ष 1992 में इंदिरा साहनी जजमेंट में भी चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने इस फैसले को निरस्त कर दिया था।

 

बिहार में पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के बाद वर्ष 1978 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने आर्थिक आधार पर सवर्णों को 3 फीसदी आरक्षण दिया था। बाद में कोर्ट ने इस फैसले को निरस्त कर दिया था।

 

सितंबर 2015 में राजस्थान सरकार ने सामान्य श्रेणी के आर्थिक पिछड़ों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 14 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया था। सितंबर 2016 में राजस्थान हाईकोर्ट ने इस बिल को रद्द कर दिया। हरियाणा में भी इसी तरह सामान्य वर्ग आरक्षण को खत्म कर दिया था।

 

गुजरात सरकार ने अप्रैल 2016 में सामान्य वर्ग के आर्थिक पिछड़े लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला लिया था। अगस्त 2016 में गुजरात हाईकोर्ट ने इस फैसले को गैरकानूनी और असंवैधानिक रद्द कर दिया गया था।

 

अब देखना ये है कि क्या माननीय सुप्रीम कोर्ट 103 वां संविधान संसोधन को चुनौती देने वाली याचिका में आर्थिक आधार पर आरक्षण को खत्म करती है, या जारी रखती है?

 

सन्दर्भलाइव ला वेबसाइट, गूगल सर्च, इंडिया कानून वेबसाइट एवं अन्य रिसर्चर वेबसाइट।


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