.

अल नीनो कमजोर हो रहा है, इससे बारिश के पैटर्न पर असर पड़ेगा, मौसम संबंधी आपदाएं बढ़ सकती हैं

नई दिल्ली

अल नीनो कमजोर हो रहा है लेकिन अगले तीन महीनों में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पारा सर चढ़कर बोलेगा. यह हालात भारत में भी देखने को मिलेगा. इससे बारिश के पैटर्न पर भी असर पड़ सकता है. इस साल मार्च से मई के बीच अल नीनो का असर 60 फीसदी रहेगा. अप्रैल से जून यह सामान्य रहेगा.

अप्रैल से जून के बीच न तो अल नीनो रहेगा. न ही ला नीना. लेकिन अल नीनो का असर देखने को मिलेगा. यह जानकारी विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने दी है. पिछले साल आया अल नीनो अब तक के पांच सबसे ताकतवर अल नीनो में से एक था. यह अपने अत्यधिक स्तर से घटकर अब कमजोर पड़ रहा है.  

WMO ने बताया कि साल के अंत में ला नीना बन सकता है. हालांकि इसे लेकर अभी कुछ कहना मुश्किल है. अल नीनो औसतन हर दो से सात साल के बीच आता है. इसका असर 9 से 12 महीने रहता है. अल नीनो यह जलवायु का ऐसा पैटर्न है, जो मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में होता है. इसमें समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है.

भारत में इस बदलाव क्या-क्या दिखेगा असर?

वैज्ञानिकों के मुताबिक इक्वेटर लाइन के आसपास प्रशांत महासागर में मौजूदा अल नीनो की अप्रैल 2024 तक विदाई हो सकती है. जुलाई में ला नीना की स्थिति आ सकती है. लेकिन कम समय के लिए. सितंबर से नवंबर 2024 के बीच ला नीना के बनने की 70% से अधिक की संभावना है.

भारत में औसत बारिश पर पॉजिटिव असर पड़ेगा. उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों में फिर से बारिश में कमी का सामना करना पड़ सकता है. पिछला ला नीना तीन साल चलने के बाद मार्च 2023 में खत्म हुआ था. इसके चलते उस साल मॉनसून में अच्छी बारिश हुई. अक्टूबर तक बारिश हुई. साथ ही फ्लैश फ्लड और भूस्खलन भी देखे गए.

पिछले साल को सबसे गर्म बनाया अल नीनो ने

भारत में मौसम और तूफान का पैटर्न बदल सकता है. हालांकि जिस तरह इंसानी गतिविधियों के चलते जलवायु में बदलाव आ रहे हैं. उनका असर अल नीनो पर भी पड़ रहा है. बढ़ते तापमान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जून 2023 से अब कोई भी महीना ऐसा नहीं रहा, जब वैश्विक तापमान ने नया रिकॉर्ड न बनाया हो. 2023 अब तक का सबसे गर्म साल था.

WMO के महासचिव सेलेस्टे साउलो ने कहा है कि अल नीनो ने बढ़ते तापमान को और बढ़ाया है. इसमें ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन और इजाफा कर रहा है. यानी गर्मी बढ़ा रहा है. इक्वेटर लाइन के आसपास के प्रशांत महासागर वाले इलाके में इसका असर देखने को मिल रहा है.

10 महीनों से समुद्री सतह का पारा चढ़ा है

साउलो ने कहा कि बाकी जगहों पर भी समुद्री सतह का तापमान 10 महीनों से लगातार अधिक रहा है. इस साल जनवरी महीने ने समुद्री सतह के अधिकतम तापमान का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. यह चिंताजनक है. इसके लिए केवल अल नीनो जिम्मेदार नहीं है.  

अल नीनो जारी भी रह सकता है, जिससे दुनिया भर के समुद्री सतह का तापमान बढ़ सकता है. यदि यह कमजोर भी पड़ता है तो भी गर्मी रहेगी. यह पिछले साल जून में डेवलप हुआ था. नवंबर से जनवरी के बीच एक्सट्रीम लेवल पर था. इसलिए इक्वेटर लाइन के आसपास के इलाको में समुद्री सतह का तापमान सामान्य से 2 डिग्री सेल्सियस ऊपर था.

मौसम संबंधी आपदाएं बढ़ सकती हैं

इस साल इस वेदर पैटर्न की वजह से एक्स्ट्रीम वेदर यानी चरम मौसमी आपदाओं में बढ़ोतरी हो सकती है. यह भी आशंका है कि अगले तीन महीने अधिकतम तापमान सामान्य से अधिक रहेगा. साथ ही बारिश के तरीके में भी बदलाव आएगा.

अल नीनो से बारिश में इजाफे के साथ हॉर्न ऑफ अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में बाढ़ आती है. वहीं दक्षिण पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी अफ्रीका में गर्म मौसम बनता है. सूखे की आशंका बढ़ जाती है. जलवायु और अल नीनों से जुड़ी चरम मौसमी घटनाओं के बारे में प्रारंभिक चेतावनियों ने अनगिनत लोगों की जान बचाई है. WMO ये काम आगे भी जारी रखेगा.

 


Back to top button