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दुश्मन सारा शहर लगता है | ऑनलाइन बुलेटिन

©भरत मल्होत्रा

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र


कातिल चारागर लगता है,

हवा में घुला ज़हर लगता है,

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किसको दें आवाज़ यहां अब,

दुश्मन सारा शहर लगता है,

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जब से छूटा साथ तुम्हारा,

लंबा बहुत सफर लगता है,

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मिलना तो चाहता हूँ तुमसे,

पर दुनिया से डर लगता है,

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हर मुश्किल में राह दिखाए,

दिल तेरा रहबर लगता है,

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पैर फैलाऊँ थोड़े मैं जब,

दीवारों से सर लगता है,

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सबके लिए जगह है इसमें,

किसी गरीब का घर लगता है,

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