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पशुओं से फैलने वाली बीमारियों से इंसानों में हर साल एक करोड़ मौतों का खतरा, 8.5 लाख वायरस एक्टिव | Newsforum

नई दिल्ली | इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो दशकों से जूनाटिक बीमारियों का प्रकोप बढ़ा है। वर्ष 2000 से हर तीसरे साल एक गंभीर जन स्वास्थ्य समस्या उत्पन्न हो रही है जिसके लिए पशुओं से इंसान में पहुंचे वायरस, पैथोजन या बैक्टीरिया जिम्मेदार हैं। जापानी इन्सेफेलाइटिस, बर्ड फ्लू, निपाह, सार्स, मर्स, जीका आदि बीमारियां इसमें प्रमुख हैं।

 

वन हेल्थ एप्रोच नहीं अपनाने से आने वाले समय में जूनाटिक बीमारियों यानी पशुओं से इंसानों में फैलने वाली बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। आंकलन है कि इस दिशा में कदम नहीं उठाए गए तो वर्ष 2050 के बाद इस प्रकार की बीमारियों से हर साल एक करोड़ मौतें हो सकती हैं। यह संख्या कैंसर एवं सड़क हादसों से होने वाली कुल मौतों से भी ज्यादा है।

 

8.5 लाख वायरस से बढ़ा खतरा

 

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस समय 8.5 लाख वायरस एवं पैथोजन सक्रिय होने का अनुमान है जिनमें करीब 20 हजार विभिन्न किस्म के कोरोना वायरस हैं। इनमें से कई वायरस पशुओं के जरिये इंसानों में आ सकते हैं। इसका खतरा पहले की तुलना में बढ़ रहा है। इसके कई कारण हैं। जलवायु खतरे, बिगड़ता पर्यावरण के अलावा पशुओं में एंटीबायोटिक दवाओं के ज्यादा इस्तेमाल से एंटी माइक्रोबियल रेसिस्टेंस (एएमआर) उत्पन्न हो रहा है जो किसी वायरस या पैथोजन के स्ट्रेन में म्यूटेशन का कारण बन सकता है। इससे नए पैथोजन भी उत्पन्न हो सकते हैं। आवासीय इलाकों में पशुओं के रहने की जगहों के बीच स्वच्छता की कमी से ऐसे संक्रमणों का पशुओं से इंसानों में फैलाव है।

 

मानव संग पशुओं की स्वास्थ्य सुरक्षा जरूरी

 

शोध में कहा गया है कि इस खतरे से निपटने के लिए एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण अपनाना होगा। इसमें इंसान के स्वास्थ्य के साथ-साथ पशुओं के स्वास्थ्य की भी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी तथा इस दिशा में पशु चिकित्सा विज्ञानियों एवं इंसानों के चिकित्सकों को मिलकर शोध करने होंगे। विभिन्न प्रकार के पैथोजन के हमले के खिलाफ इंसान को बचाने की रणनीति के साथ-साथ पशुओं को भी उनसे बचाने की रणनीति पर कार्य करना होगा।


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