चाहत के खुशबु | newsforum
©धर्मेंद्र गायकवाड़, नवागढ़ मारो
मोर मया के आगी मा झुलस गए तै ।।
कइसे मोर चक्कर मा, लहस गए तै ।।
मोर मन बगिया मा, छा गे हरियाली ।।
कारी कारी घटा बनके, बरस गए तै ।।
चलाए बान नैना के घायल कर डारे ।।
छुरा बनके’ मोर छाती मे धंस गए तै ।।
मुच-मुचाके तै’ मोर दिल मा समाके ।।
मोर दिल के धड़कन मा बस गए तै ।।
ले अब तै रख’ले, मोबाईल के नंबर ।।
लगथे के गोठियाय बर तरस गए तै ।।
चाहत के खुशबु-छिपाए नइ छिपय ।।
अरे कुछु भी बोल मगर फंस गए तै ।