अब भी वह बेबस है …
©द्रौपदी साहू (शिक्षिका), कोरबा, छत्तीसगढ़
यूं तो अंतरिक्ष तक पहुंच चुकी है नारी,
लेकिन अब भी वह बेबस है।
दुनिया की करतूतों से वह वाकिफ है,
लेकिन फिर भी वह बेबस है।
जो दूसरों को सहारा देती है,
आज वही बेसहारा है।
क्या नारी होना एक गुनाह है?
जिसकी सजा उसे मिलती है।
समाज के कुछ दरिंदे नोचते हैं उसे,
क्या ये दरिंदे नारी से परे हैं?
किसी नारी ने ही तो उसे जन्म दिया होगा,
और किसी नारी ने ही तो उसे पाला-पोसा होगा।
वह नारी भी खुद को कोसती होगी,
जिसकी कोख से इन दरिंदों ने जन्म लिया होगा।
मां, बेटी, बहन, बहू,
हर रिश्तों को बखूबी निभाती है नारी,
एक कुल को छोड़,
दूसरे कुल को घर बनाती है नारी।
गृहणी से आई ए एस तक,
हर काम बखूबी करती नारी।
इंजीनियर और डॉक्टर से लेकर,
देश की रक्षा भी करती नारी।
देश तो स्वतंत्र है, लेकिन क्या नारी स्वतंत्र हैं?
उसके हर कदमों पर,
हैवान ही हैवान हैं।
कैसे बचेगी इनकी नजरों से,
नारी की स्वर्णिम काया।
कहां है इनका ज़मीर,
कहां है इनकी सभ्यता।
क्या ये इस लोक के नहीं,
जो बेरहम पत्थर दिल हैं।
एक क्षण की हवस मिटाने को,
दानव बन पड़ते हैं।
एक क्षण के स्वार्थ के लिए,
कितने गुनाह वो करते हैं।
एक गुनाह को छिपाने,
गुनाह पर गुनाह करते हैं।
ना चिंता ना डर है इनको,
अपनी इन करतूत पर।
ना जाने कब तक करते रहेंगे,
ये जुल्म नारियों पर।
उठो जागो युग निर्माताओं,
सभ्य बनाओ समाज को।
नारी घर की शान है,
ना खोने दो इस शान को।
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