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नेकदिल वकील ने पिता को ऐसे मिलवाया अपने ‘बांग्लादेशी’ बेटे से, डांट की वजह से जेल में गुजारे सात साल | ऑनलाइन बुलेटिन

गुवाहाटी | [असम बुलेटिन] | पिता से झगड़े के बाद एक 15 वर्षीय मानसिक रूप से बीमार किशोर घर छोड़ कर भाग गया। बाल मन पर पिता की बात बैठ गई, और वह उनकी बातों पर अमल करने निकल पड़ा। वह अपने घर से भागा तो गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पर एक ट्रेन में सवार हो गया। पुलिस ने उसे बांग्लादेशी समझकर डिटेंशन सेंटर में डाल दिया। एक साल पहले जब पिता को उसके होने की खबर मिली तो परिवार ने हाई कोर्ट जाने का फैसला किया लेकिन उनसे एक सुनवाई के 1 लाख रुपये मांगे गए। इसी बीच एक नेकदिल वकील ने उनका केस मुफ्त में लड़ा। पढ़ें पूरी खबर …

 

एक छोटी सी गलती की वजह से मासूम को सात साल डिटेंशन सेंटर में काटने पड़ गए। 22 साल के असम के युवक को बांग्लादेश का घुसपैठिया मान लिया गया और कैद कर दिया गया। दरअसल वह घर से नाराज होकर भागा था। पिता से झगड़े के बाद उसने घर छोड़ दिया था। उस वक्त युवक केवल 15 साल का था। वह अपने घर से भागा तो गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पर एक ट्रेन में सवार हो गया।

 

पिता ने नाराजगी में कह दिया था कि बांग्लादेश भाग जाओ। यह बात नाबालिग के मन में बैठी थी। जब एक स्टेशन पर रूटीन चेकिंग होने लगी तो पुलिस अधिकारी ने मानसिक रूप से बीमार किशोर से पूछा कि कहां जा रहे हो। उसने कहा, बांग्लादेश जा रहा हूं। इसपर अधिकारी को संदेह हुआ कि वह बांग्लादेश का रहने वाला है। इसके बाद उसे हिरासत में ले लिया गया और भारतीय होन के प्रमाण प्रस्तुत करने को कहा गया।

 

21 जनवरी 2016 को जूडिशल मजिस्ट्रेट करीमगंज ने किशोर को विदेशी घोषित कर दिया क्योंकि वह कागज नहीं दिखा पाया था। वह अपने परिवार के बारे में भी सही जानकारी नहीं दे पा रहा था। प्रशासन ने उसे दो बार बांग्लादेश भेजने की कोशिश की लेकिन ढाका ने भी उसे लेने से इनकार कर दिया क्योंकि यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा था कि वह बांग्लादेश का नागरिक है।

 

युवक के पिता ने कहा, मेरी एक बात ने बेटे की जीवन तबाह कर दिया। पिता ने कहा कि घर से भागने के बाद उन्होंने बेटे को तलाश करने की बहुत कोशिश की लेकिन कुछ पता नहीं चल पाया। उन्होंने कहा, एक साल पहले मुझे सिलचर सेंट्रल जेल से फोन आया था कि मेरे बेटे को बांग्लादेशी करार दे दिया गया है और उसे जल्द ही ढाका भेज दिया जाएगा।

 

परिवार ने गुवाहाटी हाई कोर्ट जाने का फैसला किया लेकिन उनसे एक सुनवाई के 1 लाख रुपये मांगे गए। वे अपने बेटे को छुड़ाने के लिए इतनी रकम नहीं जुटा पा रहे थे। इसी बीच एक वकील ने उनका केस लड़ने की इच्छा जताई। पिता ने कहा, नेकदिल वकील की वजह से ही वे अपने बेटे से मिल पाए। अभी गुवाहाटी हाई कोर्ट ने युवक की नागरिकता पर फैसला नहीं सुनाया है।

 

 


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