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बहुविवाह की वैधता पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब | ऑनलाइन बुलेटिन

नई दिल्ली | [कोर्ट बुलेटिन] | उच्च न्यायालय ने सोमवार को जनहित याचिका पर सुनवाई की। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बहुविवाह की वैधता पर दाखिल एक जनहित याचिका पर केन्द्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है। इस याचिका में कहा गया कि मौजूदा पत्नी या पत्नियों की पूर्व लिखित सहमति के अभाव में एक मुस्लिम पति द्वारा द्विविवाह या बहुविवाह और उसके आवास और रखरखाव की व्यवस्था असंवैधानिक और अवैध है। मामले की अगली सुनवाई 23 अगस्त को होगी।

 

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ ने प्रतिवादियों को अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए याचिका पर नोटिस जारी किया है। इस याचिका में मुस्लिम पतियों की मौजूदा पत्नी की पूर्व अनुमति प्रदान करके पतियों द्वारा द्विविवाह और बहुविवाह को विनियमित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

 

याचिकाकर्ता ने मुस्लिम विवाहों के अनिवार्य पंजीकरण के लिए कानून बनाने की भी मांग की। याचिकाकर्ता रेशमा, ने दावा किया कि मुस्लिम पति द्वारा द्विविवाह या बहुविवाह की अनुमति केवल असाधारण मामलों में शरीयत कानूनों के तहत दी जाती है। परिस्थितियों और मुस्लिम महिलाओं की दुर्दशा को रोकने के लिए इन कानूनों को विनियमित किया जाना चाहिए।

 

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि मौजूदा पत्नी की सहमति के बिना द्विविवाह या बहुविवाह असंवैधानिक, शरीयत विरोधी, अवैध, मनमाना, अमानवीय और बर्बर है। साथ ही यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का भी उल्लंघन करता है। इस्लामी कानून द्वारा शासित देशों में भी, दूसरी शादी की अनुमति विशेष परिस्थितियों में दी जाती है, जैसे कि पहली पत्नी की बीमारी या बच्चे पैदा करने में असमर्थता।

 

याचिकाकर्ता ने आगे कहा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि धर्म के नाम पर महिलाओं के प्रति अपमानजनक व्यवहार का पालन, प्रचार और प्रोत्साहन किया जा रहा है। इस तरह की प्रथा, महिलाओं के अधिकारों के प्रति प्रतिकूल हैं और नागरिक अधिकारों का उल्लंघन करती है। मामले की अगली सुनवाई 23 अगस्त को होगी।

 

 


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