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लड़की के पास ना का विकल्प नहीं तो इसे सहमति नहीं माना जा सकता, हाईकोर्ट ने सजा बरकरार रखने दिया आदेश | ऑनलाइन बुलेटिन

चंडीगढ़ | [कोर्ट बुलेटिन] | High Court News: सोनीपत की एक यूनिवर्सिटी में छात्रा को ब्लैकमेल कर सामूहिक दुष्कर्म के मामले में दोषी छात्रों की सजा बरकरार रखने का आदेश देते हुए हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि पीड़िता के पास अगर ना का विकल्प नहीं है तो इसे उसकी सहमति नहीं माना जा सकता। हार्दिक सीकरी, करण छाबड़ा और विकास ने याचिका दाखिल करते हुए सजा के आदेश को चुनौती दी थी।

 

छात्रा ने 2015 में यूनिवर्सिटी को शिकायत सौंपी थी कि लॉ के तीन छात्र उसे ब्लैकमेल करते हैं और उससे सामूहिक दुष्कर्म किया गया। ऐसा दो साल से हो रहा है और इन छात्रों ने उसकी कुछ फोटो ली हैं। इनको वायरल करने की धमकी देकर संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाता है।

 

24 मई, 2017 को सोनीपत की स्थानीय अदालत ने हार्दिक और करण को 20 साल की सजा और विकास को सात साल जेल की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने इस मामले में तीनों छात्रों को जमानत दे दी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर फिर से सुनवाई का आदेश दिया था। अब हाईकोर्ट ने हार्दिक व करण की सजा को बरकरार रखने का आदेश दिया है जबकि विकास की सजा के खिलाफ अपील को मंजूर कर लिया है।

 

याचिकाकर्ताओं ने अन्य लड़कों के साथ पीड़िता की चैटिंग को आधार बनाते हुए पीड़िता को व्यभिचारी बताया था। हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़िता पर व्यभिचारी होने का आरोप लगा है और अगर इसे मान भी लिया जाए तो भी पीड़िता के बयान को खारिज नहीं किया जा सकता।

 

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि पीड़िता ने अपनी मर्जी से संबंध बनाए थे, ऐसे में इसे दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता को ब्लैकमेल किया जा रहा था और उसके पास ना का विकल्प नहीं था। ना का विकल्प न होने पर इसे सहमति नहीं माना जा सकता।

 

कोर्ट ने कहा कि चैटिंग को पढ़कर पता चलता है कि पीड़िता को किस हद तक परेशान किया गया। यहां तक कि पानी पीने के लिए भी पीड़िता को अनुमति लेनी पड़ती थी।

 

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