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जल्लीकट्टू को अनुमति पर सुप्रीम कोर्ट के कड़े सवाल, पांच-सदस्यीय संविधान पीठ कर रही सुनवाई | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

नई दिल्ली | [कोर्ट बुलेटिन] | तमिलनाडु के जल्लीकट्टू उत्सव पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई। अदालत ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या पशुओं पर क्रूरता के रूप में देखे जा रहे जल्लीकट्टू उत्सव के किसी भी प्रारूप को अनुमति दी जा सकती है? इस उत्सव के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ सुनवाई कर रही है।

 

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि किसी भी जानवर के प्रति क्रूरता की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

 

इस पर पीठ ने कहा कि तमिलनाडु सरकार के मुताबिक, इन सांडों को प्रशिक्षित किया जाता है और उन्हें काफी स्नेह दिया जाता है।

 

न्यायमूर्ति रस्तोगी ने कहा कि समस्या यह है कि नियम किसी भी रूप में हो सकते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कभी मेल नहीं खाती। सवाल सिर्फ इतना है कि हम जमीनी हकीकत का संज्ञान नहीं ले सकते, क्योंकि यह योजना से मेल नहीं खाती। हमें योजना की पड़ताल करनी है, जमीनी हकीकत का नहीं।

 

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि नीतियों में दिखावटी बदलाव के बावजूद सांड को सभी बेहतरीन सुरक्षा उपायों के साथ लड़ने के लिए मजबूर करना अब भी जानवर के प्रति क्रूरता है। किसी कानून की वैधता का परीक्षण या बचाव नियमों के संदर्भ में नहीं किया जा सकता है।

 

शीर्ष अदालत ने अपने 2014 के फैसले में कहा था कि सांडों को जल्लीकट्टू कार्यक्रमों या बैलगाड़ी दौड़ में शामिल होने वाले जानवरों के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। अदालत ने देश भर में इन उद्देश्यों के लिए उनके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था। तमिलनाडु सरकार ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 में संशोधन किया था और अपने यहां जल्लीकट्टू की अनुमति दी थी।

 

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