बेहाल | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©बिजल जगड
परिचय- मुंबई, घाटकोपर
हो जो इनायत बरसों के शिकवे भूल जाता हूं,
यादों के चिराग जला के अंधकार भूल जाता हूं।
बुझ गया दिल भी अब इन चारगों की तरह,
दिन से हारे दिन के में यादों से गुज़र जाता हूं ।
तुम जो आओ तो फूल का तबस्सुम भी देखूँ,
वो नहीं सुनते हमारी जान के सहम जाता हूं।
दर्द बनके दिल में आना कोई तुमसे सीख ले,
दर्द दिल का पहलू है, दिल को समझाता हूं।
जिससे था वाबस्ता के हम-कनार कैसे करूं,
एक चहेरा बनी तस्वीर; देख बेहाल हो जाता हूं ।