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दिल्ली में बेघर रैट माइनर का छलका दर्द, मेरे बेटे को पीटा, अब सिर्फ मरने का विकल्प बचा है

उत्तराखंड
उत्तराखंड में गजब की हिम्मत औऱ साहस दिखा कर लोगों के दिल-ओ-दिमाग में हीरो बनकर छा जाने वाले रैट माइनर वकील हसन का बेइंतहा दर्द अब सामने आया है। दरअसल दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA)ने वकील हसन का घर ढहा दिया है। अब बेघर हो चुके रैट माइनर वकील हसन का दावा है कि डीडीए ने इस कार्रवाई के लिए उन्हें कोई नोटिस नहीं दिया था। रैट माइनर का यह भी दावा है कि उनके बेटे की पिटाई की गई है। गुरुवार को वकील हसन ने कहा कि उनकी स्थित काफी खराब है। जिन लोगों ने उनका घर तोड़ा वो लोग उन्हें इस कार्रवाई से संबंधित कागज तक नहीं दिखा सके।

वकील हसन ने मीडिया से बातचीत में कहा, 'मुझे बहुत दुख हो रहा है कि मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है। देश के लिए हमने इतना अच्छा काम किया। मैं अपने मुंह से अपनी तारीफ नहीं करना चाहता और मुझे अच्छा भी नहीं लगता है। लोग कहते हैं कि बहुत अच्छा काम किया और उसका सिला यह मिला कि मेरे घर पर, मेरे सिर पर जो छत थी टूटी-फूटी वो भी मुझसे छीन ली गई। मेरे बच्चे सड़क पर बैठे हए हैं और अब इन्हें लेकर मैं कहां जाऊंगा। इंसान का आजकल कमाना मुश्किल हो गया है वो घर कहां से खरीदेगा और अपने बच्चों को कहां से पालेगा? अब यहीं बचा है कि वो फांसी लगा कर मर जाए। हमारे पास फिर तो यही विकल्प रह जाता है।'

वकील हसन ने आगे कहा, 'हमें सरकार से कोई आश्वासन नहीं मिला है। जब वो लोग यहां आए थे तब मैंने उनसे पूछा था कि आप किस आधार पर इसे तोड़ने के लिए आए हैं। तो इन्होंने हमें कुछ नहीं दिखाया। मुझे, मेरे दोस्त, मेरी नाबालिग बच्ची को भी पुलिस स्टेशन में रखा। मेरी पत्नी को भी थाने में ही रखा उन लोगों ने और मेरा बेटा भी मेरे साथ में था। मेरे बेटे को चोट लगी है। उसे खींचा और लड़के को मारा भी है।'

रैट माइनर वकील हसन का घर तोड़े जाने के बाद इस मामले पर सियासत भी काफी हो रही है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने केंद्र सरकार को घेरा है तो वहीं अब दिल्ली के उपराज्यपाल ने कहा है कि रैट माइनर को नया घर दिया जाएगा। आपको याद दिला दें कि पिछले साल उत्तराखंड के उत्तरकाशी में कुछ मजदूर एक टनल के अंदर फंस गए थे। उस दौरान वकील हसन औऱ उनके जैसे कुछ अन्य रैट माइनरों ने हाथ से खुदाई कर टनल में रास्ता बनाया था और फिर अंदर फंसे मजदूरों को बाहर निकाला गया था। वकील हसन ने बताया है कि उत्तराखंड सरकार ने उन्हें 50,000 रुपये दिए थे। लेकिन साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा कि महज 50,000 रुपये में क्या होता है। इतने पैसे में हम घर चलाए या कर्ज चुकाएं। एक घर था वो भी टूट गया।

 


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