.

मुझे भी है बेसब्री | ऑनलाइन बुलेटिन

©डीआर महतो “मनु”

परिचय- रांची, झारखंड


 

इंद्रधनुषी वादियों की रंगत बिखरी,

काले घने बादलों में तपस छा गया

और नदीयों की प्रवाह थम सा गया,

फिर भी समझ ना पाया मेरे चित को…

प्रिय! एक बार पलटकर देख जाना

मुझे भी है बेसब्री; तेरे नयनों में बस जाना…

 

मेरे दिल की धड़कने थक सी गयीं,

जेहन में तेरे यादों की बेसब्री छा

गयी और मैं वीरान हो गया, फिर

भी तुमने मुड़कर ना देखा मुझको…

प्रिय! एक बार मेरे करीब आ जाना

मुझे भी है बेसब्री; तेरे सांसों में खो जाना…

 

वातों की लहरों में धीरता जगी,

समुद्र की उफानें रहम मांगने लगी

और दशाएं भी घबरा गई, फिर भी

तुमने बूझ ना पाया मेरे आसक्ति को…

प्रिय! एक बार लौटकर आ जाना

मुझे भी है बेसब्री; तेरे रूह में बस जाना…

 

हवाओं की चाल भी दिग्भर्मित् हुई,

दस दिगोन् में खलबली मची और

दहक उठी जज्बातें, फिर भी तुमने

ना पहचाना अंतर्मन की आवाज़ों को…

प्रिय! एक बार एहसासों दिख जाना

मुझे भी है बेसब्री; तेरे ख्यालों में समा जाना..

 

उम्मीदों के बाजारों में मंदी छायी,

अश्क लहू में बदलकर बिखर गए और

मेरे जुबान सलाखों से बंध गए, फिर

भी तुमने ना दिया आस इस बेबस को…

प्रिय! एक बार मुझे दरस दे जाना

मुझे भी है ललक; तेरे निगाहों में खो जाना

मुझे भी है बेसब्री; तेरे बाहों में समा जाना…

 

ये भी पढ़ें :

देवी- देवताओं की तस्वीरें नदी में विसर्जित कर 250 दलितों ने अपनाया बौद्ध धर्म, कलेक्टर- एसपी ने कही ये बड़ी बात | ऑनलाइन बुलेटिन


Back to top button