अपना ही घर देखोगे तो- –
©प्रा.गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र
अपना ही घर देखोगे तो,फिर कौन ये वतन यहां संभालेगा,
ऐ,भारत के सपूतों क्या अब तुम्हारा लहू भी पानी बना है।
उतर आओ रास्तों पर आजादी में अब आजादी की लड़ाई हमें लड़ना है,
ख़तरे में पड़ी है ये लोकशाही,इसी लोकशाही को अब हमें ही बचाना है।
युंही आजादी के गीत सुनकर,ये तिरंगा महफूज नहीं रहेगा,
अब इसी लोकशाही के लिए,तुम्हें ही यहां रास्तों पर उतरना पड़ेगा।
आज भी कुछ गद्दारों की तमन्ना है,फिर से यहां गुलामी का मंज़र आएं,
ऐसे गद्दारों को चलो आज हम ही,इस वतन से जड़ों से मिटाएं।
जब सभी ने मिलकर इस देश को गुलामी की बेड़ियों से आज़ाद किया है,
तो इस देश की मिट्टी के कण-कण पर,यहां सभी का उतना ही अधिकार है।
हिन्दू मुस्लिम के सिवा अब उनके पास कोई भी हुकमी इक्का नहीं है,
समझों उनका ये खेल,ये देश तो हम सभी की एक ही मातृभूमि है।
कोई भी गद्दार जब उनसे मिल जाएं तो,देखो कैसे पवित्र बन जाता है,
और उनके खिलाफ बोलनेवाला कोई भी,यहां पर देशद्रोही बन जाता है।
अपना ही घर देखोगे तो फिर कौन ये वतन यहां संभालेगा,
ऐ,भारत के सपूतों इस मिट्टी के लिए तुम्हारे अपनों ने लहू बहाया है।
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