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सुख दुखों की मझधार में….

©प्रा.गायकवाड विलास

परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र


 

मुसाफ़िर बनके देखो चल रही है ये जिंदगी,

ख़्वाब नयनों में सजाएं हंस रही है ये जिंदगी।

 

गमों की आंधियों से लड़ते हुए थक चुकी है ये जिंदगी,

जलते अरमां लिए दिल में लड़ रही है ये जिंदगी।

 

गुज़ारिश करके अपने नशीब से मांग रही है दुवाएं,

अश्कों की बरसात में भी जल रही है ये जिंदगी।

 

मरहम बन जायेगा वो कोई तो पल इसी आशाओं में,

हौसला मन का बढ़ाए कल की ओर देख रही है ये जिंदगी।

 

रहमतें तक़दीर की कब होगी,कौन जाने इस संसार में,

उसी तक़दीर की खिदमत में कट रही है ये जिंदगी।

 

युंही नहीं मिलती मंजिलें कांटों भरी है यहां सभी राहें,

दृढ़ता से लड़ते हुए सदाकत में जी रही है ये जिंदगी।

 

मुसाफ़िर बनके देखो चल रही है ये जिंदगी,

सुख दुखों की मझधार में युंही बह रही है ये जिंदगी।

 

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