जहान | ऑनलाइन बुलेटिन
©मजीदबेग मुगल “शहज़ाद”
परिचय- वर्धा, महाराष्ट्र
अभी बुलंदी तो छु लिया आस्मान की।
कारगुजारी ना करना शैतान की ।।
फिजूल दर्स नही देते रहे मजहब ।
पासबानी जरूरी रही इमान की ।।
जब भी इतिहास पढ़ा जाये इन्सानी।
जिक्र जरूर अच्छाई के निशान की ।।
भलाई में कोताही फर्क जानकर ।
अहले समझ गलती माफ नादान की।।
जला चराग अव्वाम की भलाई का ।
फानूस बनकर हिफ़ाज़त शम्मेदान की।।
जहां बढ़ सकता है भलाई की तरफ ।
यही फजिलते जाहिर हुई कुरआन की।।
चल उठ खड़ा हो अहेद कर आदम जात।
इज्जत रखना इस जहां में इन्सान की ।।
बेगुनाह के कत्ल तो हुये सरेराह ।
यही बात बनती रही परेशान की ।।
‘शहज़ाद’ अनलहक सदा रही सच्चाई।
बदल जाये तस्वीर अभी जहान की ।।