जिन्दगी | ऑनलाइन बुलेटिन
©मजीदबेग मुगल “शहज़ाद”
परिचय- वर्धा, महाराष्ट्र
जिन्दगी सुबह हुई किसके खयालों में रात गई है।
फिर ये न कहना रात गई तो बात गई है।।
चेहरा मुस्कुराता लो जाने क्या हुआ।
ख्वाबों में सही रात किसी के साथ गई है।।
उन्हें ना पाये ख्वाबों मे चिड़चिड़ापन।
ना पुच्छों अब की बार जीत या मात गई है।।
ख्वॉबों का सहारा उनके बगैर जीने का ।
कौन हिसाब रखे कितनी मुलाकात गई है।।
ख्वॉबों ख्यालों की दुनिया में मस्त रहते ।
युहीं जिन्दगी की हकिकती सौगात गई है।।
ख्वाबों से निकलकर हकीकत में जिओ मजा।
दुल्हन लेकर आयी जिसकी बरात गई है ।।
किसी की सोच में रहे रात दिन हुये बीमार ।
चार लोगों के कंधो पर चली खाट गई है ।।
‘शहज़ाद’ जिन्दगी कुछ कर गुजरने का नाम है।
फिर क्या फायदा मौसमी बरसात गई है ।।