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कहां असर  होता किसी बातील  में | ऑनलाइन बुलेटिन

©मजीदबेग मुगल “शहज़ाद”

परिचय- वर्धा, महाराष्ट्र


ईमान की  रौशनी  कायम  रखना  अपने दिल में।

कोई कुछ ना बिगाड पाये दुनिया की महफिल में।।

 

सबर   रखना    होगा    ज़िन्दगी में जीने वालों को।

वक्त लगेगा ही  हमेशा  पाने को  जरा  मंजील में ।।

 

शमशीर  के  निचे   गला  क्या  करेंगा मासूम  वो ।

कहा था  रहेम  शुमरे  लई  जल्लाद  कातिल  में ।।

 

उनकी निघाओ का जादू पागल करदे जहाॅ को।

पर  कोई  कहाँ असर  होता किसी बातील  में।।

 

सबकुछ  लुटा  देता  सरमाया  ज़िन्दगी  का   क्यो।

लो इतनी अक्ल कहा आयी कभी किसी गाफिल मे।।

 

मासूम बच्चे बिबी और औरतो पर जुल्म करे ।

ऐसी  बुराईया  नही  होती  किसी काबिल मे ।।

 

‘शहज़ाद ‘दिल की लगन को कैसे कम करेंगे अपनी।

इतना तो फन जरूर होना चाहिए उस कामिल में ।।

 

 

*बातील=झूठा

 

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