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अपने ही रंजोगम में जला गया | newsforum

©एलसी जैदिया, बीकानेर, राजस्थान

परिचय :- शिक्षा राजनीतिक विज्ञान में एमए, शायर एवं आकाशवाणी वार्ताकार, दलित साहित्य अकादमी द्वारा डा.अंबेडकर फेलोशिप अवार्ड.


 

{गज़ल}

 

 

कोई छू कर अल्फाज मेरे, चला गया,

लगा मुझको आज फिर मैं छला गया /1

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रखता रहा, हर पांव जमीं फूंक कर

बे’नश्तर के भी कटा, मेरा गला गया /2

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शीशे सा नाजुक था मन मेरा और मैं,

ढाला जिस सांचे में, उसी में ढला गया /3

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जलते हैं नफरत में जाने क्यूं लोग यहां

मगर मैं अपने ही रंजोगम में जला गया /4

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देखी है खामोश ढलती कई शामें मैंने

इक शाम ऐसी भी जिसमें मैं ढला गया /5

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बे’खुदी की मौजों में मस्त था मैं “जैदि”

अश्क बहे जब जख्मों को मेरे मला गया /6

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बे’नश्तर:- बिन चाकू

गला:- सिर और धड़ को जोड़ने वाला भाग

मला :-दबाया गया

बे’खुदी:-बेखबर

 

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